(toc)
स्टॉक मार्केट में इमोशंस कैसे कंट्रोल करें: शेयर बाजार में जितना जरूरी तकनीकी विश्लेषण, रणनीतियां, और बाजार की समझ है उतना ही जरूरी मनोविज्ञान का बेहतर होना भी है। आपका मनोविज्ञान ही आपकी ट्रेडिंग या निवेश की सफलता असफलता में अहम भूमिका निभाता है। लालच, डर, ओवर कॉन्फिडेंस जैसी चीजें आपके निर्णय को प्रभावित करती हैं। इस लेख के मध्यान से आप समझ सकते हैं कि भावनाओं को नियंत्रित कैसे किया जाता है ताकि आपके ट्रेडिंग या निवेश के फैंसलों में आपका मनोविज्ञान बीच में ना आये। आइये विस्तार से जानते हैं:
स्टॉक मार्केट में भावनाओं का असर
1. डर: निवेश का शत्रु
- पैनिक सेलिंग: जब बाजार में तेजी से गिरावट आती है तब निवेशक पैनिक हो जाते हैं और अपने शेयर्स बेचने का फैंसला ले लेते हैं। उदाहरण के लिए जब 2008 में ग्लोबल मंदी की वजह से BSE सेंसेक्स इंडेक्स 21000 से 8000 पर आ गया था। बहुत से निवेशकों ने डर के मारे अपने शेयर्स बेच दिए थे। लेकिन जिसने इस समय धैर्य रखा था तो उन्होंने 2010-11 में बाजार में जब रिकवरी हुई तब अच्छा मुनाफा कमाया था।
- निवेश का डर: कुछ लोग तो डर की वजह से ही स्टॉक मार्केट में निवेश नहीं करते क्यूंकि वे इसे जोखिम भरा मानते हैं। इसलिए इस प्रकार के लोग फिक्स्ड डिपाजिट में अपना पैसा निवेश करते हैं क्यूंकि यह सुरक्षित होता है। लेकिन फिक्स्ड डिपाजिट केवल 5-7 प्रतिशत का ही सालाना रिटर्न देते हैं लेकिन बाजार में 12-15 प्रतिशत के रिटर्न भी संभव हैं।
- नेगेटिव सोच: डर की वजह से निवेशक नेगेटिव सोच वाले हो जाते हैं और हर छोटी गिरावट को क्रैश मानना शुरू कर देते हैं। नकारात्मक सोच की वजह से अच्छे रिटर्न भी हाथ से निकल जाते हैं।
- अधिक जानकारी बढ़ाएँ: बाजार के प्रति अपना ज्ञान अर्जित करें ताकि आप यह जान सकें कि लम्बे समय में किसी स्टॉक या इंडेक्स ने कितना रिटर्न दिया। भले ही मार्केट में कितनी भी बड़ी मंदी, या उतार चढाव हुए हों।
- लंबी अवधि का निवेश: मार्केट में शार्ट टर्म में उतार चढ़ाव होते ही रहते हैं। आपको लम्बी अवधि के निवेश के बारे में ही सोचना चाहिए। उदाहरण के लिए यदि सेंसेक्स का इतिहास देखें तो यह 1980 में 100 अंक पर था, जो अब 2025 तक 80,000+ अंक तक पहुँच चुका है।
- अनुभवी निवेशक की सलाह: आपको सेबी से पंजीकृत अनुभवी निवेशकों की सलाह लेनी चाहिए जो आपका सही मार्गदर्शन करेंगे और आपको छोटे-मोटे उतार-चढाव से बाहर निकलने में मदद करेंगे।
- डायवर्सिफिकेशन: आप अपने पोर्टफोलियो को सेक्टर के अनुसार जैसे फार्मा, टेक्नोलॉजी, FMCG, स्टॉक, म्यूच्यूअल फंड इत्यादि में बाटें ताकि जोखिम को कम किया जा सके।
2. लालच: बड़े नुकसान को बुलावा
- FOMO (Fear of Missing Out): जब बाजार में तेजी होती है तब निवेशक यह सोच कर निवेश करते हैं कि कहीं उनके हाथ से मौका निकल ना जाये। इसी लालच में वह बिना सोचे समझे निवेश कर देते हैं और बाद में नुकसान का सामना करना पड़ता है।
- अधिक आत्मविश्वास: जब निवेशकों को लगातार मुनाफा होता है तो उनमे यह ओवर कॉन्फिडेंस आता है कि अब वे बाजार के माहिर हो चुके हैं। यही लालच निवेशकों को अधिक लिवरेज सट्टा-आधारित ट्रेडिंग, की ओर धकेलता है।
- जुआ ट्रेडिंग: ज्यादा लालच और जल्दी पैसा बनाने के चक्कर में लोग इंट्राडे, ऑप्शन ट्रेडिंग में उतार जाते हैं और गलत तरिके से बिना सोचे समझे ट्रेड करते हैं। भारत में इंट्राडे में 90% लोग नुकसान करते हैं क्यूंकि इंट्राडे ट्रेडिंग भावनात्मक निर्णयों पर आधारित है।
- निर्धारित लक्ष्य: शेयर बाजार में 10-12 प्रतिशत रिटर्न को एक उचित लक्ष्य माना गया है। इसलिए इससे ज्यादा का लक्ष्य रखना बेवकूफी भरा निर्णय हो सकता है। अधिक लालच कभी-कभी बड़े नुकसान का कारण बन जाता है।
- रिसर्च करें: बिना सोचे समझे किसी भी स्टॉक में निवेश ना करें। कंपनी के फंडामेंटल जैसे P/E रेशो, डेट-टू-इक्विटी रेशियो, और रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) की अच्छी तरह से जांच करें। इससे समझदारी वाला निवेश आप कर पाएंगे।
- प्रॉफिट बुकिंग: सही समय पर अपने निर्धारित लक्ष्य के अनुसार स्टॉक में मुनाफा बुक करना जरूरी है। उदाहरण के लिए यदि अपने 12% रिटर्न के लिए निवेश किया था तो यदि इतना रिटर्न आपको मिल रहा है तो प्रॉफिट बुक करें और अधिक लालच ना दिखाएँ।
- निवेश डायरी बनायें: आप जो भी निवेश निर्णय लेते हैं और किस-किस स्टॉक में निवेश करते हैं उसे एक डायरी में लिखें। ऐसा करना से आप अपनी गलतियों को सुधार सकेंगे और लालच से भी बचे रहेंगे।
3. अधिक आत्मविश्वास (Over Confidence)
- Diversification की कमी: जब निवेशक ओवर कॉन्फिडेंस के चक्कर में एक ही स्टॉक में अपना पूरा पैसा लगा देते हैं और वो स्टॉक डाउन ट्रेंड में चला जाता है तो उन्हें नुकसान देखना पड़ता है। इसलिए एक ही सेक्टर के एक ही स्टॉक में पूरा पैसा कभी निवेश ना करें।
- जोखिम को अनदेखा करना: ज्यादा कॉन्फिडेंस आ जाने के कारण निवेशक बाजार के जोखिमों, आर्थिक मंदी, जैसे कारकों को अनदेखा कर देते हैं।
- ओवर ट्रेडिंग: अधिक आत्मविश्वास के कारण लोग बार-बार ट्रेडिंग करते हैं जिससे वो ब्रोकरेज टैक्स के चंगुल में फंस जाते हैं। ओवर ट्रेडिंग करने से टैक्स भी बहुत लगते हैं जिसके कारण प्रॉफिट बनाना मुश्किल हो जाता है।
- पोर्टफोलियो पर नजर रखें: अपने पोर्टफोलियो को इस प्रकार देखें और बनायें जो कि आपकी जोखिम की सहनशक्ति और आपके तय किये गए लक्ष्य के अनुसार हो।
- विविधीकरण जरूर करें: अपने निवेश को एक ही क्षेत्र में करने की बजाय अलग-अलग क्षेत्र जैसे FMCG, PHARMA, बैंकिंग, गोल्ड, ETF में बांटें।
- विशेषज्ञों की राय: आप अपने निवेश के प्रति सेबी रजिस्टर्ड एक्सपर्ट की सलाह ले सकते हैं। क्यूंकि एक सेबी रजिस्टर्ड व्यक्ति सेबी के रूल्स के अनुसार आपको सही सलाह दे सकता है। या जो भी एक्सपर्ट हों उनकी राय जरूर ले सकते हैं।
- सीखने पर ध्यान दें: आप शेयर बाजार में जितना सीखने पर ध्यान देंगे आप उतने ही सुलझे हुए निवेशक बनेंगे और डर, लालच जैसी चीजों से खुद को दूर रख पाएंगे। आप बेंजामिन ग्राहम की The Intelligent Investor पढ़ सकते हैं।
4. मानसिक तनाव और बार-बार पोर्टफोलियो चेकिंग
- नींद की कमी होना: जब बाजार की अस्थिरता के कारण निवेशकों का पोर्टफोलियो नेगेटिव में आता है तो वह चिंतित होकर न्यूज़ पढ़ने में एक्टिव हो जाते हैं और देर रात तक बाजार की ख़बरें देखने लगते हैं। ऐसा करने से नींद में कमी आती है और तनाव भी बढ़ता है।
- निर्णय लेने में गलती करना: अधिक तनाव के कारण निवेशक गलत निर्णय लेने लगते हैं और गलत समय पर शेयर्स बेच कर अपना नुकसान बुक कर लेते हैं।
- अधिक वित्तीय नुकसान: बार-बार पोर्टफोलियो को देखने के कारण निवेशक शार्ट टर्म में निर्णय लेने को मजबूर होते हैं और लॉन्ग टर्म की रणनीतियों को भूल जाते हैं।
- समय निर्धारित करें: आपको एक समय निर्धारित करना चाहिए कि मैं अपने पोर्टफोलियो को महीने में या फिर 3 महीने में एक बार चेक करूंगा। ऐसा करने से आप तनाव से बचेंगे और मार्केट के छोटे-मोटे उतार चढाव आपको परेशान नहीं करेंगे।
- मेडिडेशन और योग: आपको ऐसे योग और मैडिटेशन करने चाहिए जो मानसिक तनाव को कम करते हैं। प्रतिदिन ऐसा जरूर करें एक निवेशक और ट्रेडर के लिए यह बहुत जरूरी है। ट्रेडिंग और निवेश के लिए दिमाग को तंदरुस्त रखना बहुत जरूरी है।
- संतुलित जीवनशैली बनायें: निवेश के अलावा आपको अपने परिवार को समय, खेल कूद या फिर अपनी पसंदीदा चीजों को भी वक़्त देना चाहिए। हर समय ट्रेडिंग और निवेश के बारे में सोचने से काम नहीं चलेगा।
- सोशल मीडिया से दूरी बनायें: आजकल सोशल मीडिया और न्यूज़ चैनल से भी निवेशकों के अंदर तनाव बढ़ रहा है। आप इनसे दूरी बना लें ताकि आप तनाव और फोमो से बच सकें।
भावनाओं पर काबू पाने के तरीके और रणनीति
1. ठोस निवेश योजना बनाएँ
- शार्ट टर्म (1-3 वर्ष): इन तीन वर्षों में आपका क्या लक्ष्य है उसके हिसाब से निवेश की प्लानिंग करें।
- मिड टर्म (5-10 वर्ष): अगले पांच वर्षों में आप निवेश के जरिये क्या हासिल करना चाहते हैं ये प्लान करें।
- लॉन्ग टर्म (15-25 वर्ष): रिटायरमेंट के उदेशय से आप निवेश कर सकते हैं।
2. अनुशासन का पालन करें
- सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP): आप हर महीने की एक फिक्स राशि के जरिये SIP शुरू कर सकते हैं। उदाहरण के लिए 15000 रूपए की महीने की SIP के जरिये 12% रिटर्न के हिसाब से बीस साल में 1 करोड़ के लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। इसके लिए आप हमारे SIP Calculator की मदद ले सकते हैं।
- स्टॉप-लॉस ऑर्डर रखें: आप एक स्टॉप लॉस आर्डर के जरिये अपने नुकसान को सीमित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए अगर आप किसी शेयर को 500 रूपए में खरीदते हैं तो आप उसमें 10% का स्टॉप लॉस यानि 450 रूपए रख सकते हैं। ऐसा करने से लॉस सीमित होगा और आप स्टॉक में लम्बे समय में फंसेंगे भी नहीं।
- प्रॉफिट बुकिंग लेवल तय करें: यदि आपका ख़रीदा हुआ शेयर आपको 25% रिटर्न दे रहा है तो आप उसमें से 70% हिस्सा बुक करके बाकी के हिस्से को होल्ड कर सकते हैं।
- लंबी अवधि का दृष्टिकोण रखें: मार्केट के शार्ट टर्म के उतार चढाव पर ध्यान ना दें। लम्बी अवधि में शेयर्स अच्छा रिटर्न देते हैं।
3. भावनाओं को नियंत्रित करने का प्रयास करें
- ध्यान (Meditation) करें: दिमाग को शांत करने के लिए आप रोजाना 15 मिनट ध्यान करने का प्रयास करें। गहरी सांस लेनी की तकनीक से आप तुरंत तनाव को कम कर सकते हैं।
- जर्नलिंग करें: यदि आपने कोई शेयर्स लिए हैं तो उसका एक जर्नल बनायें और उसमें लिखें कि आपने यह शेयर मजबूत फंडामेंटल को देखते हुए अपने किस उदेशय को पूरा करने के लिए लिया है।
- सेल्फ-विश्लेषण: अपने सभी ट्रेडिंग या निवेश के निर्णय का विश्लेषण करें कि आपने अब तक कितने शेयर्स लिए और उनमे मुनाफा घाटा क्या हुआ। या फिर आप डर की वजह से स्टॉक में से निकल गए और बाद में वह स्टॉक डबल हो गया। ऐसा करने से आपको अपनी गलतियां सुधारने का अवसर मिलेगा।
- माइंडफुलनेस ऐप्स का इस्तेमाल: Headspace, Insight Timer, या Calm जैसे ऐप्स माइंडफुलनेस प्रैक्टिस को आसान बनाने का काम करते हैं।
भावनात्मक जागरूकता का फायदा:
4. टेक्निकल एनालिसिस और डाटा पर भरोसा करें
- मूविंग एवरेज का इस्तेमाल करने से आप ट्रेंड की सही दिशा में निवेश या ट्रेड कर सकते हैं। यदि आपको किसी स्टॉक में दिख रहा है कि 50 दिन की MA 200 दिन की MA को ऊपर की तरफ क्रॉस कर रही है तो यह तेजी का संकेत होता है। यह अपट्रेंड की निशानी है और इसका विपरीत डाउन ट्रेंड की निशानी है।
- रिलेटिव स्ट्रेंथ इंडेक्स (RSI): यदि RSI की वैल्यू 70 है तो यह ओवर बोट स्तिथि को दर्शाता है और यदि इसकी वैल्यू 30 है तो ओवर सोल्ड की स्तिथि को दिखाता है। यह आपको गलत प्राइस पर खरीदने से बचाएगा।
- कैंडलस्टिक पैटर्न: आप मूविंग एवरेज, RSI के साथ कैंडलस्टिक पैटर्न का इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे हैमर कैंडल तेजी को और शूटिंग स्टार मंदी का संकेत देती है।
- उच्च वॉल्यूम: यदि किसी स्टॉक में अधिक वॉल्यूम तेजी से बढ़ रही है और टेक्निकल एनालिसिस के हिसाब से भी तेजी का संकेत मिल रहा है तो यह आपके आत्मविश्वास को बढ़ावा देगा।
- Bollinger बैंड्स का इस्तेमाल: आप इस indicator का इस्तेमाल ब्रेकआउट देखने के लिए कर सकते हैं।
5. बिहेवियरल फाइनेंस को ध्यान से समझें
- लॉस एवर्शन (Loss Aversion): इसका मतलब यह है कि लोग नुकसान से बचने के लिए ज्यादा उत्साहित होते हैं। उदाहरण के लिए निवेशक नुकसान को ज्यादा होल्ड करते हैं इस विश्वास में कि दोबारा उप्पर आ जायेगा। और जब प्रॉफिट होता है तो छोटे-मोटे प्रॉफिट में निकल जाते हैं।
- हर्ड मेंटैलिटी (Herd Mentality): लोग बाहरी दुनिया को देखते हैं कि कौन क्या कर रहा है। यदि पूरी दुनिया क्रिप्टो में निवेश कर रही है तो खुद भी वही काम करेंगे। कुल मिलकर दूसरों के हिसाब से निर्णय लेना ही हर्ड मेंटैलिटी है।
- एंकरिंग (Anchoring): यदि किसी ने 2000 रूपए पर किसी स्टॉक को ख़रीदा है और वह 1500 आ चूका है तो लोग यह सोचते हैं कि जब 2000 आएगा तो मैं निकल जाऊंगा।
- कन्फर्मेशन बायस (Confirmation Bias): यदि आपने किसी स्टॉक को ख़रीदा है तो आप हमेशा उसके बारे में अच्छी ख़बरें ही सुनना पसंद करते हैं। इसे कन्फर्मेशन बायस कहा जाता है।
- ओवरकॉन्फिडेंस बायस: इसका मतलब यह है कि लोग खुद बड़ा एनालिस्ट मानने लगते हैं और इंट्राडे में ओवर ट्रेडिंग करते हैं और निवेश के गलत फैंसले लेते हैं।
- आपको अपने पिछले सभी निर्णयों को ध्यान में रखना चाहिए कि कहीं आपने हर्ड मेंटैलिटी की वजह से निवेश तो नहीं किया था। इस गलती को दोबारा ना दोहराएं।
- अपनी भावनाओं की बजाय कंपनी के फंडामेंटल जैसे P/E रेशो, और डाटा पर भरोसा करें।
शेयर बाजार में में सफलता की व्यावहारिक टिप्स
- अनुशासित किताबें पढ़ें जैसे The Psychology of Money by Morgan Housel, The Intelligent Investor by Benjamin Graham, Thinking, Fast and Slow by Daniel Kahneman। इन किताबों की मदद से आप ओवर कॉन्फिडेंस, लॉस एवर्शन जैसी स्तिथियों पर काबू पा सकते हैं।
- ऑनलाइन कोर्स जैसे Zerodha Varsity, और udemy जैसे प्लेटफार्म से सीखने का प्रयास करें।
- अनुभवी निवेशकों और विशेषज्ञों का एक नेटवर्क बनायें जैसे आप उन्हें सोशल मीडिया पर फॉलो करें और उनसे सीखने का प्रयास करें।
- धैर्य और अनुशासन बनायें रखें। उदाहरण के लिए राकेश झुनझुनवाला जी ने टाइटन जैसे स्टॉक को लम्बे समय तक होल्ड करके अच्छा मुनाफा बनाया। वारेन बुफे से भी लॉन्ग टर्म निवेश के गुण सीखे जा सकते हैं।
- अपने लक्ष्यों पर ध्यान दें और बाहरी शोर से खुद को बचाएं। क्यूंकि बाहरी शोर आपके अनुशासन को तोड़ सकता है।
- अपने निवेश के लक्ष्यों को जैसे 10-12% सालाना रिटर्न मिलने पर खुश रहें और अधिक लालच में ना पड़ें। अक्सर निवेशक पैसा दोगुना करने के चक्कर में गलत स्टॉक में घुस जाते हैं।
- टेक्निकल और फंडामेंटल एनालिसिस का संतुलन बनायें और यह देखें की कंपनी का P/E रेशो 15-20 , डेट-टू-इक्विटी रेशो 1 से कम, रिटर्न ऑन इक्विटी (ROE) 15 से अधिक हो तो अच्छा माना जाता है।
- स्टॉक के स्ट्रांग सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल पता करें और ओवर बोट और ओवर सोल्ड जैसी स्तिथि के लिए RSI का उपयोग करें।
स्टॉक मार्केट में भावनाओं को नियंत्रित करने के लिए केस स्टडी
- 2008 की वैश्विक मंदी की वजह से भारत का BSE sensex 20000 के लेवल से लगभग 8000 के लेवल पर आया था। डर की वजह से जिन्होंने शेयर्स बेच दिए उनको बाद में पछतावा हुआ क्यूंकि रिकवरी के बाद लगभग लोगों ने अच्छा मुनाफा बनाया। इससे यह सीख मिलती है कि लम्बे समय में मजबूत फंडामेंटल वाले स्टॉक फायदा ही देते हैं।
![]() |
| 2008 की वैश्विक मंदी |
- 2020 में भी जब बड़ा क्रेश आया तब निफ़्टी इंडेक्स 12000 के लेवल से 7500 के लेवल पर आ गई थी और अब निफ़्टी 2025 में 25000 के आस पास है। इस से यह सीख मिलती है कि मार्केट में कितना भी बड़ा भूचाल आये लम्बे समय में उसे ऊपर ही जाना है।
![]() |
| 2020 में बड़ा क्रेश |
- रिलायंस के स्टॉक की कीमत सन 2000 में केवल 30 रूपए थी और अब 2025 में 1400 रूपए है। बीच में स्टॉक को कंपनी द्वारा स्प्लिट भी किया गया था जिससे निवेशकों को अधिक शेयर्स मिले थे। इस से यह सीख मिलती है कि स्ट्रांग कंपनी का भविष्य उज्जवल ही होता है।
- सन 2000 में इनफ़ोसिस कंपनी के शेयर्स की कीमत लगभग 150 रूपए थी और अब 2025 में कीमत 2000 का आंकड़ा छू गई थी। इससे लॉन्ग टर्म निवेशकों को अच्छा रिटर्न प्राप्त हुआ। एक स्ट्रांग आईटी कंपनी में लम्बी अवधि के लिए निवेश अच्छा होता है।



