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शेयर बाजार क्या है और यह कैसे काम करता है? इस लेख के माध्यम से आप शेयर बाजार में निवेश, ट्रेडिंग, जोखिम, फायदे, पोर्टफोलियो मैनेजमेंट, डीमैट अकाउंट खोलना, सेंसेक्स, निफ़्टी से जुड़ी जानकारी विस्तार से पढ़ सकते हैं। यह शुरुआती लोगों के लिए सम्पूर्ण गाइड है।
शेयर बाजार परिचय:
शेयर बाजार एक ऐसा मंच हैं जहाँ पर कंपनियों के शेयर्स, डेरीवेटिव और बांड्स का व्यापार होता है। इसके जरिये निवेशक किसी भी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी ले सकते हैं और बेच सकते हैं। भारत का शेयर बाजार दो बड़ी एक्सचेंज बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) द्वारा चलाया जाता है। कंपनी के शेयर्स की कीमतें डिमांड, सप्लाई, प्रदर्शन और आर्थिक स्तिथि से तय होती हैं।
शेयर बाजार भारत की अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा है। इसके माध्यम से निवेशक छोटी-बड़ी कंपनी में हिस्सेदारी ले सकते हैं और मुनाफा बना सकते हैं। आइये इस लेख की मदद से शेयर बाजार की सम्पूर्ण जानकारी आपको देते हैं।
शेयर बाजार क्या है? गहरी समझ
शेयर बाजार के माध्यम से छोटी बड़ी कंपनियों के शेयर्स ख़रीदे और बेचे जाते हैं। ऐसा करने से आप कंपनी के छोटे हिस्से के मालिक बनते हैं और कंपनी घाटा, मुनाफा जो भी करती है उसकी हिस्सेदारी भी आपकी होती है। कंपनी यदि मुनाफा करेगी तो आपको भी फायदा होगा और घाटा करेगी तो शेयर्स की कीमतें गिरेंगी और नुकसान भी झेलना पड़ेगा।
उदाहरण: मान लीजिये आपने किसी कंपनी के 100 शेयर्स 200 रूपए के भाव पर ख़रीदे। अब भाव 250 रूपए बढ़ गया तो आपको 100*50=5000 का मुनाफा होगा।
शेयर बाजार का महत्व
- निवेशकों के लिए इसका महत्व यह है यदि लम्बी अवधि के लिए सन 2000 में रिलायंस में किसी ने 10000 रूपए निवेश किये होते तो आज उनकी कीमत लाखों में है। लम्बी अवधि का निवेश फायदेमंद साबित होता है।
- कंपनियों के लिए ये महत्व यह है कि उन्हें पूंजी जुटाने का अवसर प्राप्त होता है। जुटाई गई पूंजी का इस्तेमाल कंपनी अपनी ग्रोथ, नए प्रोजेक्ट के लिए कर सकती है।
- अर्थव्यवस्था के लिए महत्व यह है कि यह निवेश और रोजगार दोनों को बढ़ावा देता है।
शेयर बाजार का इतिहास
भारतीय शेयर बाजार का इतिहास 19वीं सदी से शुरू हुआ था। भारत में दो सबसे बड़ी एक्सचेंज हैं NSE और BSE हैं। BSE की स्थापना 1875 में हुई थी और यह एशिया की सबसे पुरानी एक्सचेंज है। NSE की स्थापना 1992 में हुई थी, और यह अब भारत की सबसे बड़ी एक्सचेंज बन चुकी है। भारतीय शेयर बाजार ने पिछले सालों के मुकाबले अब काफी तर्रक्की की है और डिजिटल ट्रेडिंग, वैश्विक एकीकरण को बढ़ावा दिया है। डिजिटल ट्रेडिंग की वजह से Zerodha, Upstox जैसे ब्रोकर के माध्यम से शेयर्स को खरीदना बेचना आसान हुआ है।
शेयर बाजार के प्रकार - Types of stock market
1. प्राइमरी मार्केट (Primary Market):
जब कोई कंपनी पहली बार इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (IPO) के जरिये शेयर्स आम जनता के लिए उपलब्ध करवाती है तो उसे प्राइमरी मार्केट कहते हैं। निवेशक उस कंपनी के शेयर्स खरीद कर हिस्सेदारी लेने का काम करते हैं। IPO की अधिक जानकारी के लिए IPO क्या होता है? वाला लेख पढ़ें।
IPO की प्रक्रिया:
- सबसे पहले कंपनी द्वारा एक बैंक नियुक्त किया जाता है जो आईपीओ के लेन-देन के प्रोसेस को देखता है।
- कंपनी को ड्राफ्ट रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस (DRHP) सेबी को सौंपना पड़ता है जिससे उन्हें आईपीओ लाने के लिए मंजूरी मिलती है।
- मंजूरी मिलने के बाद निवेशक आईपीओ में अप्लाई करते हैं और आईपीओ के शेयर्स लाटरी के आधार पर बाँटें जाते हैं।
उदाहरण: मान लीजिये 2024 में जब swiggy का आईपीओ आया था तो उसमें अगर आप निवेश करते और आपको शेयर्स अलॉट होते तो आप उतने हिस्से के भागीदार बनते जितने शेयर्स आपको मिले होते।
2. सेकेंडरी मार्केट (Secondary Market)
इस तरह की मार्केट में पहले से ही जारी शेयर्स की खरीद या बिक्री होती है। NSE और BSE दोनों एक्सचेंज सेकेंडरी मार्केट का हिस्सा हैं। इस तरह की मार्केट में ज्यादातर ट्रेडिंग गतिविधियां शामिल हैं।
विशेषताएं:
- निवेशक एक दूसरे से शेयर्स खरीदते या बेचते हैं।
- कीमतें डिमांड और सप्लाई की वजह से बदलती रहती हैं।
- अधिक लिक्विडिटी के कारण शेयर्स खरीदना बेचना आसान होता है।
उदाहरण: मान लीजिये आप रिलायंस के शेयर्स खरीदते हैं तो यह शेयर्स आप सीधे कंपनी से नहीं बल्कि किसी अन्य निवेशक या ट्रेडर से खरीद रहे होते हैं।
3. डेरिवेटिव्स मार्केट (Derivative Market)
इस मार्केट में फ्यूचर और ऑप्शन जैसे साधनों का व्यापार किया जाता है। यह किसी इंडेक्स या स्टॉक की कीमत पर आधारित होते हैं या उन्हें फॉलो करते हैं।
- फ्यूचर्स: फ्यूचर एक ऐसा एग्रीमेन्ट होता है जिसमें आप एक निश्चित भविष्य की तारीख के अनुसार तय कीमत पर खरीदने बेचने को तैयार होते हैं।
- ऑप्शंस: इसमें आप कॉल ऑप्शन और पुट ऑप्शन की मदद से किसी इंडेक्स की फ्यूचर वैल्यू में निवेश करते हैं। आपको मुनाफा घाटा जो भी हो उसमें से बिना किसी बाधा के निकल भी सकते हैं।
उदाहरण: मान लीजिये अभी निफ़्टी 25000 के भाव पर है और आप 25000 के फ्यूचर में निवेश करते है और यदि प्राइस बढ़कर 25500 हो जाता है तो आपको मुनाफा होगा।
4. कमोडिटी मार्केट (Commodity Market)
भारत में MCX (Multi Commodity Exchange) के जरिये सोना,चांदी, कच्चा तेल इत्यादि की ट्रेडिंग होती है। इसे कमोडिटी ट्रेडिंग कहते हैं।
उदाहरण: यदि आप MCX पर सोने या चांदी पर ट्रेड करते हैं और अगर इनके भाव बढ़ते हैं तो आपको मुनाफा होगा।
5. बॉन्ड मार्केट (Bond Market)
इस तरह की मार्केट में सरकारी या कॉर्पोरेट बांड्स को ख़रीदा या बेचा जाता है। यह कम रिस्क वाला निवेश विकल्प होता है।
उदाहरण: मान लीजिये आप भारत सरकार के किसी बांड में निवेश करते हैं जो 10 साल में 7% सालाना रिटर्न दे सकता है तो यह कम जोखिम वाला निवेश का अच्छा विकल्प है।
6. करेंसी मार्केट (Currency Market)
इस तरह की मार्केट में NSE और BSE के माध्यम से करेंसी जैसे USD/INR में खरीद बिक्री की जाती है।
उदाहरण: यदि आप USD/INR के फ्यूचर में निवेश करते हैं और इसकी कीमत में इजाफा होता है तो आप मुनाफा बना सकते हैं।
शेयर बाजार कैसे काम करता है?
1. स्टॉक एक्सचेंज
स्टॉक एक्सचेंज शेयर बाजार का मुख्य मंच है जिनकी मदद से खरीद बिक्री का प्रोसेस आसान होता है। भारत में दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंज हैं:
- बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE): यह भारत की पुरानी एक्सचेंज है जिसकी स्थापना 1875 में हुई थी। इसका सेंसेक्स इंडेक्स भारत की टॉप 30 कंपनियों की परफॉरमेंस को दर्शाता है।
- नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE): भारत की सबसे बड़ी एक्सचेंज निफ़्टी 50 का इंडेक्स जिसमें कुल 50 कंपनियों को शामिल किया गया है।
प्रमुख कार्य:
- आईपीओ के बाद शेयरों की लिस्टिंग और ट्रेडिंग की सुविधा उपलब्ध करवाना।
- कीमतों की पारदर्शिता सुनिश्चित करना।
- निवेशकों को सुरक्षित और नियंत्रित प्लेटफार्म प्रदान करना।
2. डिमैट और ट्रेडिंग खाता
निवेश या ट्रेडिंग शुरू करने के लिए दो खातों की आवश्यकता होती है:
- डिमैट अकाउंट: इस खाते के जरिये आप जो भी शेयर्स खरीदेंगे वह इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में इसमें स्टोर होते हैं और यह सब प्रक्रिया NSDL और CDSL द्वारा संचालित होती है।
- ट्रेडिंग अकाउंट: यह अकाउंट आपको ट्रेडिंग की सुविधा देता है जिससे आप शेयर्स को खरीद या बेच सकते हैं।
उदाहरण: यदि आप Zerodha ब्रोकर के जरिये किसी कंपनी के शेयर्स लम्बे समय के लिए खरीदते हैं तो यह शेयर्स आपके डीमैट खाते में इलेक्ट्रॉनिक रूप से क्रेडिट किये जाते हैं। इन्हे आप कभी भी अपने डीमैट अकाउंट के जरिये देख सकते हैं।
3. ब्रोकर और ब्रोकरेज फर्म
ब्रोकर की मदद से ही आप शेयर्स को खरीदते या बेचते हैं। यह स्टॉक एक्सचेंज और निवेशक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभाने का कार्य करते हैं।
ब्रोकरेज के प्रकार:
- फुल-सर्विस ब्रोकर: ICICI Direct, HDFC सिक्योरिटीज दोनों फुल सर्विस ब्रोकर हैं इनका कार्य सलाह, रिसर्च सपोर्ट इत्यादि सुविधा प्रदान करना है।
- डिस्काउंट ब्रोकर: Zerodha, उपस्टेक्स एक डिस्काउंट ब्रोकर हैं जो केवल ट्रेडिंग सुविधा कम खर्च पर उपलब्ध करवाते हैं।
4. सेबी (SEBI) - Securities exchange board of india
भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) शेयर बाजार क कण्ट्रोल करने का काम करता है। इनकी कार्यप्रणाली की वजह से ही शेयर बाजार सुचारु रूप से चल रहा है। इसके निम्नलिखित कार्य हैं:
- निवेशकों के हितों की रक्षा करना।
- बाजार में पारदर्शिता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करना।
- धोखाधड़ी और गलत गतिविधियों को रोकने का कार्य करना।
- ट्रेडिंग और निवेश को आसान बनाने के लिए नए कानून लेकर आना।
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SEBI official webiste |
5. ट्रेडिंग और सेटलमेंट प्रक्रिया
भारतीय शेयर बाजार में T+1 सेटलमेंट सिस्टम लागू है, जिसका अर्थ यह है कि ट्रेडिंग के एक कार्य दिवस बाद शेयर्स ट्रांसफर और धन के लेन-देन के प्रोसेस को पूरा करना है।
प्रक्रिया:
- ऑर्डर प्लेसमेंट: निवेशक मार्केट या लिमिट आर्डर पर शेयर्स को खरीदने का आर्डर देता है।
- आर्डर मैचिंग: जिस स्टॉक एक्सचेंज पर निवेशक ने शेयर्स को ख़रीदा है वह खरीददार और विक्रेता के आर्डर मैच करने का प्रोसेस करते हैं।
- सेटलमेंट प्रोसेस: जब ट्रेड पूरी हो जाती है तो खरीददार के डीमैट में शेयर्स को ट्रांफर किया जाता है और विक्रेता के खाते में धन जमा कर दिया जाता है।
उदाहरण: यदि आप सोमवार को टाटा स्टील के 100 शेयर्स लेते हैं तो अगले दिन मंगलवार को शेयर्स आपके डीमैट खाते में जमा हो जायेंगे।
शेयर बाजार के प्रमुख घटक - Stock Market Key Components
1.सेंसेक्स और निफ्टी
- सेंसेक्स Sensex 30: यह BSE का इंडेक्स है जिसमें 30 कंपनियों को जगह दी गई है और किस कंपनी को अंदर या बाहर करना वह काम एक्सचेंज के द्वारा समय-समय पर होता रहता है।
- निफ्टी Nifty 50: यह NSE का इंडेक्स है जिसमें 50 कंपनियों को जगह दी गई है। यदि कोई कंपनी खराब प्रदर्शन करती है तो उसे लिस्ट से एक्सचेंज द्वारा निकाल दिया जाता है और उसकी जगह दूसरी अच्छी कंपनी को शामिल कर लिया जाता है।
उदाहरण: यदि निफ़्टी 1000 अंक बढ़ती है तो इसमें शामिल 50 कंपनियों के शेयर्स में भी वृद्धि होगी।
2. बुल और बेयर मार्केट
- बुल मार्केट (Bull Market): इस तरह की मार्केट में लम्बे समय तक बुल रन चलता है यानि शेयर्स और इंडेक्स की कीमतें बढ़ती रहती हैं। उदाहरण के लिए 2020 के क्रैश के बाद मार्केट में अच्छा बुल रन देखने को मिला।
- बेयर मार्केट (Bear Market): इस तरह की मार्केट मंदी का प्रतिक होती है और शेयर्स की कीमतें लगातार गिरती रहती हैं। उदाहरण के लिए 2008 की ग्लोबल मंदी।
3. सपोर्ट और रेजिस्टेंस लेवल
- सपोर्ट लेवल: सपोर्ट का मतलब है जहाँ पर शेयर्स की कीमतें गिरना बंद हो जाती हैं और तेजी बनने के आसार होते हैं। सपोर्ट पर खरीदार ज्यादा एक्टिव होते हैं।
- रेजिस्टेंस लेवल: इसका मतलब है जहाँ से शेयर्स के भाव ऊपर जाने बंद हो जाते हैं। रेजिस्टेंस पर बेचने वालों की संख्या ज्यादा हो जाती है जिससे भाव नीचे आते हैं।
उदाहरण: यदि 1000 रूपए रिलायंस स्टॉक का सपोर्ट है तो इस भाव से तेजी बनने के आसार हो सकते हैं और यदि इसका रेजिस्टेंस 1200 रूपए है तो यहाँ से भाव नीचे आने आसार बनते हैं।
4. डेरिवेटिव्स
डेरिवेटिव्स में फ्यूचर्स और ऑप्शंस शामिल होते हैं। इनमें जोखिम और मुनाफा दोनों ज्यादा होते हैं।
उदाहरण: मान लीजिये निफ़्टी अभी 24000 पर है और आप 24000 का कॉल ऑप्शन 100 रूपए में लेते हैं और निफ़्टी 100 पॉइंट मूव करती है तो आपका प्रीमियम 150 रूपए हो जायेगा।
5. म्यूचुअल फंड और ETF
- म्यूचुअल फंड: इसका मतलब है कई निवेशकों के पैसे को इकठा करके उन्हें इक्विटी, बांड्स इत्यादि में निवेश करना।
- ETF: इसका मतलब है एक्सचेंज ट्रेडेड फंड जो कि एक्सचेंज में ट्रेड होता है। यह म्यूच्यूअल फंड से अलग इसलिए है क्यूंकि आप इसे अपने मनचाहे भाव पर NSE/BSE एक्सचेंज के द्वारा खरीद या बेच सकते हैं।
उदाहरण: यदि आप निफ़्टी की टॉप 50 कंपनियों में एक साथ निवेश करना चाहते हैं तो आप निफ़्टी 50 का ETF niftybees ले सकते हैं।
6. आर्थिक संकेतों का असर
शेयर बाजार आर्थिक संकेतकों से भी प्रभावित होता है जिसका असर शेयर्स में गिरावट के रूप में देखने को मिल सकता है।
- जीडीपी (GDP): यदि इसमें बढ़ावा होता है तो यह बुल मार्केट का संकेत देती है।
- मुद्रास्फीति (Inflation): यदि इन्फ्लेशन ज्यादा होगी तो इसका असर शेयर्स में भी देखने को मिलेगा।
- ब्याज दरें (Interest rate): यदि RBI ब्याज दरें बढ़ता है तो यह निवेशकों को निर्णय लेने से रोकता है।
- विनिमय दर: यदि भारत का रुपया कमजोर होता है तो इससे विदेशी निवेशकों का इंटरेस्ट कम हो सकता है।
शेयर बाजार में निवेश कैसे शुरू करें?
1. डिमैट और ट्रेडिंग अकाउंट खोलें
निवेश करना हो या ट्रेडिंग सबसे पहले आपको एक ट्रेडिंग और डीमैट अकाउंट खुलवाना होता है। आप zerodha, angel one, upstox पर फ्री में डीमैट और ट्रेडिंग खता खोल सकते हैं।
इसके लिए आवश्यक दस्तावेज:
- पैन कार्ड
- आधार कार्ड
- बैंक खाता विवरण
- फोटो और डिजिटल सिग्नेचर
2. वित्तीय लक्ष्य और जोखिम सहनशक्ति
- शार्ट टर्म लक्ष्य: 1-3 साल में मुनाफा।
- लॉन्ग टर्म लक्ष्य: 5-10 साल में वेल्थ बनाने के लिए।
जोखिम सहनशक्ति:
- उच्च जोखिम: डेरिवेटिव्स, स्मॉल-कैप शेयर इत्यादि।
- मध्यम जोखिम: मिड-कैप शेयर, म्यूचुअल फंड इत्यादि।
- कम जोखिम: लार्ज-कैप शेयर, बॉन्ड्स इत्यादि।
आपका लक्ष्य और जोखिम पहले से निर्धारित होना जरूरी है। इसके बिना निवेश या ट्रेडिंग संभव नहीं है।
3. रिसर्च और विश्लेषण
किसी भी निवेश से पहले दो प्रकार के विश्लेषण महत्वपूर्ण होते हैं:
- फंडामेंटल एनालिसिस: कंपनी की वित्तीय स्तिथि, कर्ज, मुनाफा, भविष्य के विश्लेषण को फंडामेंटल एनालिसिस में रखा गया है। फंडामेंटल एनालिसिस के लिए आप screener.in वेबसाइट का इस्तेमाल कर सकते हैं।
- टेक्निकल एनालिसिस: सपोर्ट, रेजिस्टेंस, कैंडलस्टिक पैटर्न, चार्ट पैटर्न्स, डिमांड सप्लाई ज़ोन्स इत्यादि के विश्लेषण को टेक्निकल एनालिसिस में रखा गया है।
4. ट्रेडिंग
- इंट्राडे ट्रेडिंग: यह ट्रेडिंग जोखिम भरी होती है। इसमें एक ही दिन में शेयर्स को ख़रीदा या बेचा जाता है।
- लॉन्ग-टर्म निवेश: अच्छी कंपनी के शेयर्स को लम्बे समय तक होल्ड किया जाता है।
उदाहरण: यदि आप इंट्राडे में किसी शेयर को 300 रूपए पर खरीदते हैं और भाव 310 रूपए हो जाता है तो आपको 10 रूपए प्रति शेयर मुनाफा होता है।
शेयर बाजार में पैसा कैसे कमाएं?
1. पूंजीगत लाभ (Capital Gains)
जब आप किसी शेयर को उसकी खरीदी गई कीमत से ऊपर बेचते हैं तो यह कैपिटल गेन माना जाता है।
उदाहरण: मान लीजिये आपने रिलायंस के 100 शेयर्स 1000 रूपए के भाव पर ख़रीदे। यदि भाव 1000 से 1100 हो जाता है तो आपका मुनाफा 100×100= 10000 रूपए होगा।
2. डिविडेंड (Dividend)
अच्छी और बड़ी कंपनियां अपने मुनाफे के हिस्से में से कुछ हिस्सा अपने शेयर होल्डर्स को भी देती हैं उसे डिविडेंड कहते हैं।
उदाहरण: मान लीजिये HUL कंपनी 30 रूपए प्रति शेयर का डिविडेंड देती है और आपके पास इसके 200 शेयर्स हैं तो आपको डिविडेंड के रूप में 6000 रूपए आपके बैंक खाते में प्राप्त होंगे।
3. डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग
डेरीवेटिव ट्रेडिंग में फ्यूचर ऑप्शन आते हैं। यह इंडेक्स या स्टॉक के भाव को फॉलो करते हैं।
उदाहरण: यदि आपको लगता है निफ़्टी का भाव ऊपर जा सकता है तो निफ़्टी का जो भाव करेंट में चल रहा है उसका कॉल ऑप्शन खरीद कर मुनाफा बना सकते हैं। यह एक बड़ा टॉपिक है जो हम अपने अन्य लेख में कवर करेंगे।
4. स्टॉक रोटेशन
यह भी मुनाफा बनाने के लिए बेहतर ऑप्शन है जैसे फेस्टिव सीजन में HUL और dabur जैसे शेयर्स में मुनाफा करना।
5. सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP)
SIP के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश करके भी मुनाफा किया जा सकता है। लेकिन म्यूच्यूअल फंड शार्ट टर्म के लिए नहीं लम्बी अवधि के लिए बेस्ट है।
उदाहरण: यदि आप 5000 रूपए प्रति महीने से सिप शुरू करते हैं तो यह अगले 10 साल में 12% रिटर्न के हिसाब से 10-11 लाख रूपए बन सकते हैं।
6. डिविडेंड रीइन्वेस्टमेंट प्लान (DRIP)
इसका मतलब यह होता है कि जो कंपनी आपको डिविडेंड दे रही है उस डिविडेंड को खर्च करने की बजाय उसी शेयर में दोबारा निवेश करना
उदाहरण: मान लीजिये आपके पास ITC के 200 शेयर्स हैं और कंपनी 10 रूपए प्रति शेयर डिविडेंड देती है तो प्राप्त हुए 2000 रूपए से ITC के ओर शेयर्स ख़रीदे जा सकते हैं। ऐसा करने से लॉन्ग टर्म में रिटर्न अच्छे हो जाते हैं।
शेयर बाजार में जोखिम और सावधानियां
1. बाजार के जोखिम
- बाजार जोखिम: बाजार में आर्थिक, राजनितिक जोखिम हमेशा बने रहते हैं।
- कंपनी-विशिष्ट जोखिम: यदि कंपनी ख़राब प्रदर्शन करती है या कोई घोटाला करती है तो यह भी जोखिम बना रहता है।
- लिक्विडिटी जोखिम: कुछ शेयर्स ऐसे होते हैं जिनमे लिक्विडिटी कम होती है तो उन्हें बेचना मुश्किल हो सकता है।
- अस्थिरता जोखिम: बाजार में अस्थिरता का जोखिम अधिक उतार चढाव की वजह से हो सकता है।
2. बाजार में सावधानियां
- डायवर्सिफिकेशन: किसी एक ही सेक्टर या एक ही स्टॉक में पूरा पैसा निवेश करने की बजाय अलग-अलग सेक्टर में पैसा निवेश करें।
- स्टॉप-लॉस: यदि कंपनी खराब प्रदर्शन करती है तो एक स्टॉप लॉस जरूर रखें ताकि आप उस स्टॉक में लम्बे समय तक ना फसें।
- नियमित निगरानी करें: बाजार की स्तिथि की जानकारी रखें ओर अपने पोर्टफोलियो पर नजर बनाये रखें।
- जानकारी प्राप्त करें: Moneycontrol, BSE, NSE जैसी विश्वसनीय वेबसाइट से जानकारी प्राप्त करें।
शेयर बाजार में टैक्सेशन
- 1 साल से कम अवधि में शेयर्स बेचते हैं तो अल्पकालिक पूंजीगत लाभ (STCG) और 1 साल से अधिक अवधि में शेयर्स बेचते हैं तो दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG) लगता है।
- यदि आप डिविडेंड इनकम कमाते हैं तो उसपर डिविडेंड टैक्स भी देना पड़ता है।
- हर शेयर की खरीद बिक्री इंट्राडे, डिलीवरी सभी पर सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (STT) लागू होता है।
- इसके इलावा ब्रोकर द्वारा ब्रोकरेज शुल्क और GST जैसे कर लगाए जाते हैं।
बाजार मनोविज्ञान और भावनात्मक निर्णय
1. लालच और डर
लालच: जब मार्केट में तेजी यानि बुल मार्केट होती है तब लोग लालच में अधिक रिस्क लेने की कोशिश करते हैं।
डर: जब बेयर मार्केट की शुरुआत होती है या फिर थोड़ी से गिरावट होती है तो डर के मारे शेयर्स बेच देते हैं।
उदाहरण: 2020 में जब बड़ा क्रैश हुआ तो डर की वजह से निवेशकों ने अपने शेयर्स बेच दिए और बाद में जब रिकवरी आई तो अच्छा रिटर्न मार्केट ने दे दिया।
2. हर्ड मेंटालिटी
निवेशक यह देखते हैं कि लोग कहाँ निवेश कर रहे हैं। लोगों को देखकर भीड़ का हिस्सा बनते हैं और वहीँ निवेश करते हैं।
सलाह: अपनी रिसर्च, कंपनी के फंडामेंटल और अपने लक्ष्यों पर भरोसा करें। अधिक जानकारी के लिए स्टॉक मार्केट में इमोशंस कैसे कंट्रोल करें वाला लेख जरूर पढ़ें
3. ओवरकॉन्फिडेंस
कुछ निवेशक बार-बार मुनाफा करने के बाद खुद को बाजार का एक्सपर्ट मानने लगते हैं और यही ओवर कॉन्फिडेंस नुकसान का कारण बन जाता है।
टेक्निकल और फंडामेंटल विश्लेषण का महत्व
1. फंडामेंटल एनालिसिस:
शेयर बाजार में निवेश के लिए फंडामेंटल एनालिसिस सीखना बहुत जरूरी है क्यूंकि इसकी मदद से ही हम एक बेहतर कंपनी में निवेश कर सकते हैं। इसमें किस तरह की एनालिसिस होती है औए जानते हैं।
- P/E रेशियो: इसकी वैल्यू 20-25 के बीच हो तो अच्छा है। यह कीमत और आय का अनुपात है।
- EPS: इस पता चलता है कि कंपनी की प्रति शेयर आय कितनी है।
- ROE: रिटर्न ओन इक्विटी का मतलब है कंपनी इक्विटी पर कितना रिटर्न निकाल रही है। यह कंपनी के लाभ को दर्शाता है। यह 20 के आस पास हो तो अच्छा होता है।
- डेट-टू-इक्विटी रेशियो: इस से पता चलता है कंपनी के ऊपर कर्ज कितना है। इसकी वैल्यू 1 या 1 से कम हो तो अच्छा है।
- P/B रेशियो: इससे बुक वैल्यू और प्राइस की गणना होती है।
- कैश फ्लो: इस से पता लगा सकते हैं कि कंपनी की नकदी स्थिति।
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screener.in website |
2. टेक्निकल एनालिसिस
जिस तरह फंडामेंटल एनालिसिस से हम कंपनी के बारे में जान सकते हैं उसी प्रकार हम टेक्निकल एनालिसिस से जान सकते हैं कि हमें स्टॉक किसी भाव पर और कब लेना चाहिए। टेक्निकल एनालिसिस में क्या इस्तेमाल होता है आइये जानते हैं।
- मूविंग एवरेज का इस्तेमाल सपोर्ट रेजिस्टेंस और एवरेज प्राइस निकालने के लिए किया जाता है। उदाहरण के लिए 50 दिन की मूविंग एवरेज सपोर्ट का काम कर सकती है और प्राइस अगर इसके नीचे है तो रेजिस्टेंस का काम कर सकती है।
- कैंडलस्टिक पैटर्न जैसे हैमर, इनवर्टेड हैमर, डोजी इत्यादि का इस्तेमाल ट्रेंड रिवर्सल जानने के लिए किया जाता है।
- डिमांड सप्लाई ज़ोन्स का इस्तेमाल यह जानने के लिए किया जाता है ताकि किसी भी स्टॉक कि डिमांड कहा है और सप्लाई यानि बेचने का जोन कहा है।
- RSI इंडिकेटर का इस्तेमाल ओवर बोट और ओवर सोल्ड जैसी स्तिथि जानने के लिए किया जाता है।
- Bollinger band इंडिकेटर का इस्तेमाल ब्रेकआउट और रेंज बाउंड स्तिथि जानने के लिए किया जा सकता है।
उदाहरण: मान लीजिये RSI ओवर बोट स्तिथि बता रहा है साथ में शूटिंग स्टार कैंडलस्टिक पैटर्न बना हो तो यह प्राइस के नीचे आने का संकेत हो सकता है।
निवेश की शिक्षा
यदि आप शेयर बाजार में काम करना चाहते हैं और सफल होना चाहते हैं तो आपको निवेश की शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना होगा। बिना शिक्षा के बाजार में उतरेंगे तो केवल नुकसान ही होगा। आइये जानते हैं किस प्रकार आप निवेश की शिक्षा को बढ़ावा दे सकते हैं।
संसाधन:
- ऑनलाइन कोर्स करें: Zerodha Varsity, NSE Academy जैसे विश्वसनीय प्लेटफार्म से आप कोर्स कर सकते हैं और अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं।
- किताबें पढ़ें: शेयर बाजार से जुडी कुछ लेखकों की किताबें जैसे "The Intelligent Investor" by Benjamin Graham, और "One Up on Wall Street" by Peter Lynch इस तरह की किताबें आपको एक सफल निवेशक बनने में मदद कर सकती हैं।
- वेबसाइट: Moneycontrol, Economic Times, BSE इंडिया का इस्तेमाल करें।
सलाह: सबसे पहले डेमो ट्रेडिंग खाते का इस्तेमाल करें। कम से कम 6 महीने शेयर बाजार को सीखने में दें।
विदेशी बाजारों का प्रभाव
आपको यह भी जान लेने चाहिए कि भारतीय स्टॉक मार्केट पर विदेशी बाजारों का भी प्रभाव दिखाई दे सकता है। यह प्रभाव किस रूप में हो सकता है आइये जानते हैं।
- विदेशी निवेशक जैसे FII भारतीय शेयर बाजार में निवेश करते हैं। FII की बिकवाली से भारतीय स्टॉक मार्केट काफी प्रभावित होती है।
- रूपए की कमजोरी से FII की बिकवाली हो सकती है या निवेश घट सकता है।
- अमेरिका और चीन के बीच युद्ध या व्यापार ख़राब होने की स्तिथि से भी भारतीय शेयर बाजार पर असर पड़ सकता है।
- अमेरिका के फ़ेडरल रिजर्व सिस्टम की ब्याज दर वृद्धि का असर भी देखने को मिल सकता है।
कमोडिटी और करेंसी मार्केट का प्रभाव
1. कमोडिटी मार्केट
कमोडिटी की कीमतों के बढ़ने घटने से (जैसे तेल, सोना) इत्यादि शेयर बाजार को प्रभावित कर सकती हैं।
उदाहरण: यदि तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो यह ऑटो मोबाइल सेक्टर जैसे मारुती के शेयर्स की कीमतों को प्रभावित कर सकती है।
2. करेंसी मार्केट
जो कंपनियां इम्पोर्ट पर निर्भर होती हैं तो रूपए की कमजोरी की वजह से प्रभावित होती हैं।
उदाहरण: जब रूपए में कमजोरी आती है तो आईटी कंपनियों जैसे TCS के लिए यह फायदेमंद हो सकता है। क्यूंकि इनकी इनकम विदेशी करेंसी में होती है।
निवेशकों के प्रकार
1. रिटेल निवेशक
यह वो निवेशक हैं जिनके पास पूंजी कम होती है और छोटे कैपिटल से निवेश या ट्रेड करते हैं।
2. इंस्टीटूशनल निवेशक
इस केटेगरी में FII, म्यूचुअल फंड, और बीमा कंपनियां आती हैं जिनका निवेश करोड़ों में होता है। इनके पास मनी पावर होती है।
3. हाई नेट-वर्थ इंडिविजुअल (HNI)
इस केटेगरी में वो आते हैं जिनकी नेटवर्थ ज्यादा है। ऐसे निवेशक जो रिटेल केटेगरी से ऊपर होते हैं और अधिक जोखिम उठा सकते हैं।
4. डे ट्रेडर (Day Trader)
इस तरह के ट्रेडर इंट्राडे ट्रेडर होते हैं जो इंट्राडे में ऑप्शन ट्रेडिंग या स्टॉक में मुनाफा बनाते हैं।
बाजार में घोटालों और उनसे बचाव के तरिके
1. सामान्य घोटाले
- Pump and Dump: अक्सर बड़े निवेशक छोटे स्टॉक की कीमतें बढाकर रिटेल निवेशकों को फंसा लेते हैं। शेयर्स की बढ़ती कीमतों को देखकर आम निवेशक उसे खरीद लेता है और लालच में फंस कर अपना कैपिटल खो बैठता है।
- पोंजी स्कीम: बाजार में कुछ लोग आम निवेशकों को अधिक रिटर्न देने वाली स्कीम में फंसाकर उनका पैसा लूट कर भाग जाते हैं।
2. बचाव के उपाय
- एक सेबी रजिस्टर्ड ब्रोकर ही चुनें।
- अधिक रिटर्न वाली स्कीम में निवेश करने से बचें।
- किसी भी स्टॉक में निवेश करने से पहले फंडामेंटल और टेक्निकल जरूर करें।
निष्कर्ष:
इस लेख के माध्यम से हमने आपको शेयर बाजार क्या है, शेयर बाजार कैसे काम करता है, और शेयर बाजार की हर जरूरी जानकारी साझा की है। शेयर बाजार के सही ज्ञान, रिस्क मैनेजमेंट, रणनीति और अनुशासन से अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है। इस लेख की मदद से आप अपनी शेयर बाजार की यात्रा को आसान बना सकते हैं। लेख पसंद आया हो तो दूसरों के साथ भी शेयर करें।
FAQs: शेयर बाजार से संबंधित सामान्य प्रश्न
डिमैट और ट्रेडिंग अकाउंट में क्या अंतर है?
उत्तर: ट्रेडिंग अकाउंट के जरिये आप शेयर्स की खरीद या बिक्री कर सकते हैं जबकि डीमैट अकाउंट में आपके द्वारा ख़रीदे हुए शेयर्स को इलेक्ट्रॉनिक रूप में स्टोर किया जाता है।
इंट्राडे ट्रेडिंग और लॉन्ग-टर्म निवेश में क्या अंतर है?
उत्तर: इंट्राडे में एक दिन के अंदर ही शेयर्स को ख़रीदा या बेचा जाता है और लॉन्ग टर्म निवेश में शेयर्स को अपने डीमैट अकाउंट में दिनों, महीनों या वर्षों के लिए होल्ड किया जाता है।
स्मॉल-कैप और लार्ज-कैप शेयरों में क्या अंतर है?
उत्तर: स्माल कैप के अंदर छोटी कंपनियां होती हैं जिनमे जोखिम और रिटर्न दोनों ज्यादा होते हैं और लार्ज कैप में बड़ी कंपनियां होती हैं जो स्थिर होती हैं और स्टेबल रिटर्न प्रदान करती हैं।
शेयर बाजार में घोटालों से कैसे बचें?
कम कीमत वाले शेयर में निवेश से बचें, कंपनी के फंडामेंटल जरूर देखें और उच्च रिटर्न वाली स्कीम से दूर रहें।
डिस्क्लेमर (Disclaimer)
यह लेख केवल शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी हुई जानकारी किसी भी प्रकार से किसी भी स्टॉक या आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं है। शेयर बाजार में बिना अपने वित्तीय सलाहकार से विचार विमर्श किये निवेश ना करें। इस लेख में दी गई जानकारी के आधार पर हुए किसी भी नुकसान या वित्तीय हानि के लिए लेखक, या वेबसाइट को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।