Pre-Open Market क्या होता है और इसका फायदा कैसे लें?

Hemant Saini
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प्री-ओपन मार्केट: शेयर बाज़ार का "वार्म-अप सेशन" जो बदल सकता है आपका ट्रेडिंग गेम! 😎

हैलो निवेशक भाइयों और बहनों! 👋 क्या आपने कभी सुबह 9 बजे से पहले ही शेयर मार्केट की तेज़ी-मंदी की खबरें सुनी हैं? या फिर आपका स्टॉक ओपनिंग बेल (सुबह 9:15 AM) बजते ही अचानक 5% ऊपर या नीचे दिखा? अगर हाँ, तो इसका राज़ है "प्री-ओपन मार्केट" यानी "बाज़ार खुलने से पहले का सत्र"! 💡 आज हम इसी गुप्त हथियार 🛡️ को डिटेल में समझेंगे – क्या है, कैसे काम करता है, SEBI के नियम क्या कहते हैं, और सबसे ज़रूरी... आप इसका फायदा कैसे उठा सकते हैं? चलिए, शुरू करते हैं!

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प्री-ओपन मार्केट क्या है? समझिए सिंपल भाषा में! 🤔

सोचिए, क्रिकेट मैच शुरू होने से पहले पिच पर खिलाड़ी वार्म-अप करते हैं न? ठीक वैसे ही, प्री-ओपन मार्केट (Pre-Open Market Session) भारतीय शेयर बाज़ार (NSE और BSE) का वार्म-अप सेशन है! 🔥 यह सुबह 9:00 AM से 9:15 AM तक चलता है, जबकि रेगुलर ट्रेडिंग 9:15 AM पर शुरू होती है.

इसका मकसद है "ओपनिंग प्राइस" (Opening Price) को स्थिर और न्यायसंगत बनाना. पहले, बाज़ार खुलते ही बड़े ऑपरेटर भारी मात्रा में ऑर्डर डालकर शेयर की कीमतों में अचानक उछाल या गिरावट पैदा कर देते थे! 😱 2008 के मार्केट क्रैश के बाद SEBI (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) ने इस प्रॉब्लम को सॉल्व करने के लिए 2010 में प्री-ओपन सेशन शुरू किया.

ज़रूरी नोट: प्री-ओपन सेशन सिर्फ़ इक्विटी मार्केट (शेयरों) के लिए होता है. कमोडिटी या करेंसी मार्केट में नहीं.

प्री-ओपन मार्केट कैसे काम करता है? 3 मैजिकल फेज़! ⏱️

प्री-ओपन सेशन को 3 छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटा गया है. हर फेज़ का अपना रोल है:

फेज़ 1: ऑर्डर एंट्री टाइम (9:00 AM – 9:08 AM) – "तैयारी का वक़्त!" 📝

  • इस 8 मिनट के दौरान आप और बाकी ट्रेडर्स अपने बाय (खरीदने) या सेल (बेचने) के ऑर्डर डाल सकते हैं.
  • कैसा ऑर्डर? सिर्फ़ लिमिट ऑर्डर (Limit Order) ही चलता है. यानी आपको एक स्पेसिफिक प्राइस बताना होगा, जिस पर आप खरीदना या बेचना चाहते हैं.
  • क्या दिखेगा? इस टाइम पर आपको इंडिकेटिव इक्विलिब्रियम प्राइस (IEP) दिखाई देगी. यह एक अनुमानित कीमत है जो बताती है कि अगर ऑर्डर मिलान अभी हो तो शेयर किस प्राइस पर खुलेगा. यह लगातार बदलती रहती है.
  • क्या ट्रेड होगा? नहीं! इस फेज़ में कोई भी ऑर्डर एक्ज़ीक्यूट नहीं होता. सब सिर्फ़ "कतार में लगते हैं".

फेज़ 2: ऑर्डर मिलान टाइम (9:08 AM – 9:12 AM) – "मैच फिक्सिंग का पल!" 🎯

  • ये सिर्फ़ 4 मिनट का होता है, लेकिन सबसे अहम!
  • इस दौरान एक्सचेंज (NSE/BSE) सभी लगे हुए ऑर्डरों को देखता है और एक ऐसी प्राइस ढूंढता है जहाँ खरीदने की मांग (Demand) और बेचने की सप्लाई (Supply) एक दूसरे से सबसे ज़्यादा मेल खाएँ.
  • यही प्राइस बन जाती है उस शेयर की ओपनिंग प्राइस (Opening Price).
  • इस प्राइस पर जितने भी ऑर्डर मैच कर सकते हैं, उन्हें एक्ज़ीक्यूट कर दिया जाता है.
  • ध्यान दें: ये ओपनिंग प्राइस 9:15 AM पर रेगुलर मार्केट की शुरुआती कीमत बन जाती है.

फेज़ 3: बफर टाइम (9:12 AM – 9:15 AM) – "परिवर्तन का ब्रेक!" ⏸️

  • ये आखिरी 3 मिनट का "कूल-डाउन" पीरियड है.
  • इसमें कोई नया ऑर्डर नहीं डाला जा सकता, ना ही मौजूदा ऑर्डर को मॉडिफाई या कैंसल किया जा सकता है.
  • इसका मकसद है सिस्टम को रेगुलर ट्रेडिंग (9:15 AM से) के लिए तैयार करना और ओपनिंग प्राइस को फाइनलाइज़ करना.
  • 9:15 AM बजते ही यह प्राइस मार्केट स्क्रीन पर दिखाई देती है और नॉर्मल ट्रेडिंग शुरू हो जाती है.

प्री-ओपन मार्केट क्यों ज़रूरी है? SEBI की सोच! 🧠

2008 के वैश्विक मंदी (Global Financial Crisis) के समय भारतीय बाज़ारों में भी भारी उथल-पुथल हुई. बाज़ार खुलते ही शेयरों की कीमतों में 20-30% तक का उछाल या गिरावट आ जाती थी! 😨 इससे छोटे निवेशकों को भारी नुकसान होता था. प्री-ओपन सेशन के मुख्य फायदे हैं:

  1. वोलेटिलिटी कंट्रोल करना: ओपनिंग प्राइस को कैलकुलेटेड तरीके से सेट करके, खबरों (जैसे बजट, कंपनी रिजल्ट, ग्लोबल इवेंट्स) के कारण होने वाली अचानक कीमतों में उछाल/गिरावट को कम किया जा सका है.
  2. सही और फेयर प्राइस डिस्कवरी: ऑर्डरों के ज़रिए असली डिमांड-सप्लाई पता चलती है, जिससे ओपनिंग प्राइस ज़्यादा सटीक और बाज़ार के हिसाब से बनती है.
  3. बड़े प्लेयर्स के मैनिपुलेशन पर लगाम: पहले बड़े ऑपरेटर भारी मात्रा में ऑर्डर डालकर कीमतें अपने फायदे के लिए मूव करा देते थे. प्री-ओपन मैकेनिज्म इस पर रोक लगाता है.
  4. निवेशकों को टाइम देना: IEP देखकर निवेशकों को अंदाज़ा हो जाता है कि मार्केट किस दिशा में खुलने वाला है, जिससे वो अपनी स्ट्रेटजी बना सकते हैं.

प्री-ओपन मार्केट के फायदे: स्मार्ट निवेशक बनने की कुंजी! 🔑

अगर आप इसे समझकर इस्तेमाल करें, तो प्री-ओपन सेशन आपके लिए गोल्डन चांस हो सकता है:

1. मार्केट सेंटीमेंट का अंदाज़ा लगाएं!

  • सुबह 9:00 से 9:08 AM के बीच देखें कि इंडिकेटिव इक्विलिब्रियम प्राइस (IEP) कहाँ है.
  • अगर IEP पिछले दिन के क्लोजिंग प्राइस से काफी ऊपर है, तो मतलब मार्केट में तेज़ी (Bullishness) का माहौल है.
  • अगर IEP काफी नीचे है, तो मतलब मंदी (Bearishness) का रुझान है.
  • यह आपको दिन के ट्रेंड का अंदाज़ा देता है – गैप अप (Gap Up) या गैप डाउन (Gap Down) ओपन हो सकता है.

2. अच्छी एंट्री पाने का मौका!

  • मान लीजिए आप लंबे समय से एक अच्छे शेयर को खरीदने का इंतज़ार कर रहे थे, लेकिन वो ऊँचे लेवल पर चल रहा था.
  • अगर किसी नेगेटिव खबर (जैसे कंपनी का नुकसान या ग्लोबल मार्केट गिरावट) के कारण प्री-ओपन में IEP पिछले क्लोज से बहुत नीचे दिख रहा है, तो आप प्री-ओपन में ही एक लिमिट बाय ऑर्डर अपने मनमुताबिक कीमत पर डाल सकते हैं.
  • अगर ओपनिंग प्राइस आपके लिमिट प्राइस के आसपास या उससे बेहतर होती है, तो आपका ऑर्डर एक्ज़ीक्यूट हो सकता है – मतलब आपको वो शेयर कम कीमत पर मिल गया! 🎉

3. जल्दी एक्ज़िट करने का विकल्प!

  • अगर आपको लगता है कि कोई नेगेटिव खबर आने वाली है या मार्केट गिरेगा, और आप किसी शेयर में फंसे हैं, तो प्री-ओपन में ही लिमिट सेल ऑर्डर डालकर उसे बेचने की कोशिश कर सकते हैं.
  • अगर ओपनिंग प्राइस आपकी एक्सपेक्टेशन के आसपास आती है, तो आप नुकसान बढ़ने से पहले ही उस शेयर से बाहर निकल सकते हैं.

4. IPO लिस्टिंग डे पर स्पेशल एडवांटेज!

  • IPO लिस्टिंग वाले दिन प्री-ओपन सेशन खासा एक्टिव रहता है.
  • अगर आपको लगता है कि IPO की लिस्टिंग प्राइस (Issue Price) से काफी ऊपर खुलेगी और आप जल्दी प्रॉफिट बुक करना चाहते हैं, तो प्री-ओपन में सेल ऑर्डर डालकर फायदा ले सकते हैं.

प्री-ओपन मार्केट के नुकसान और जोखिम: सावधानी बरतें! ⚠️

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. प्री-ओपन सेशन में भी कुछ चुनौतियाँ और रिस्क हैं:

1. लिक्विडिटी की कमी (Low Liquidity):

  • रेगुलर मार्केट की तुलना में प्री-ओपन में ट्रेडिंग वॉल्यूम कम होता है.
  • इसका मतलब है कि कुछ ऑर्डर (खासकर बड़ी मात्रा वाले) पूरे नहीं हो पाते या उन्हें एक्ज़ीक्यूट होने में दिक्कत आ सकती है.

2. प्राइस डिस्कवरी में जोखिम:

  • कम वॉल्यूम के कारण, कभी-कभी बड़े खिलाड़ी (Operators) कुछ शेयरों में ऐसे ऑर्डर डाल सकते हैं जो असल इंटेंशन से नहीं होते (जैसे बहुत ऊँचा बाय या बहुत नीचा सेल), सिर्फ़ IEP को प्रभावित करने के लिए.
  • इससे ओपनिंग प्राइस वास्तविक डिमांड-सप्लाई को ठीक से नहीं दिखा पाती (हालांकि SEBI के नियम ऐसा करने से रोकते हैं).

3. नॉर्मल ट्रेडिंग से अलग नियम:

  • प्री-ओपन में सिर्फ़ लिमिट ऑर्डर ही चलते हैं. मार्केट ऑर्डर, स्टॉप लॉस ऑर्डर आदि काम नहीं करते.
  • ऑर्डर मॉडिफाई/कैंसल सिर्फ़ पहले फेज़ (9:00-9:08 AM) में ही कर सकते हैं.

4. नए निवेशकों के लिए कन्फ्यूजन:

  • IEP देखकर नए ट्रेडर्स घबरा सकते हैं और गलत निर्णय ले सकते हैं (जैसे IEP ऊँचा देखकर जल्दबाजी में खरीद लेना या नीचा देखकर डरकर बेच देना).

प्री-ओपन मार्केट का फायदा लेने की 5 पावरफुल स्ट्रेटजी! 💪

अब आता है सबसे ज़रूरी सवाल: "मैं प्री-ओपन मार्केट का फायदा कैसे उठाऊँ?" ये रहीं कुछ स्मार्ट स्ट्रेटजी:

1. खबरों पर पैनी नज़र रखें! (News is King!) 👑

  • प्री-ओपन मार्केट पर ओवरनाइट ग्लोबल मार्केट ट्रेंड (US, Europe, Asia), कंपनी के नतीजे (Results), बोर्ड मीटिंग्स, बड़े अधिग्रहण (Acquisitions), या कोई ब्रेकिंग न्यूज़ का सबसे ज़्यादा असर पड़ता है.
  • सुबह उठकर फाइनेंशियल न्यूज़ वेबसाइट्स (जैसे Moneycontrol, Economic Times, Investing.com) ज़रूर चेक करें.
  • उदाहरण: अगर रात में US मार्केट 2% गिरा है, तो भारतीय बाज़ार भी Gap Down खुलने की संभावना है. प्री-ओपन में IEP आपको इसका अंदाज़ा देगी.

2. लिमिट ऑर्डर का सही इस्तेमाल करें! (Master the Limit Order)

  • प्री-ओपन में सिर्फ़ लिमिट ऑर्डर ही काम करता है. इसलिए ये सीखना बेहद ज़रूरी है.
  • लॉन्ग टर्म इन्वेस्टर्स: अगर आप किसी अच्छे फंडामेंटल वाले शेयर को डिप पर खरीदना चाहते हैं और प्री-ओपन में IEP पिछले क्लोज से काफी नीचे है, तो पिछले क्लोज या उससे थोड़ा ऊपर की प्राइस पर लिमिट बाय ऑर्डर डालें. हो सकता है आपको शेयर सस्ते में मिल जाए!
  • शॉर्ट टर्म ट्रेडर्स: अगर आपको लगता है कि कोई पॉजिटिव खबर आई है और शेयर Gap Up खुलेगा, तो आप पिछले क्लोज प्राइस के आसपास लिमिट बाय ऑर्डर डाल सकते हैं. अगर ओपनिंग प्राइस आपके ऑर्डर प्राइस से ऊपर होती है, तो आपका ऑर्डर एक्ज़ीक्यूट हो जाएगा और आप तुरंत प्रॉफिट में आ सकते हैं!

3. इंडिकेटिव इक्विलिब्रियम प्राइस (IEP) को समझें! (Understand the IEP)

  • IEP सिर्फ़ एक "अनुमानित" कीमत है, फाइनल ओपनिंग प्राइस नहीं.
  • अगर IEP लगातार ऊपर जा रही है, तो मतलब बायर्स एक्टिव हैं. अगर नीचे जा रही है, तो सेलर्स प्रभावी हैं.
  • IEP और अंतिम ओपनिंग प्राइस में थोड़ा अंतर हो सकता है, लेकिन ट्रेंड आमतौर पर सही दिशा दिखाता है.

4. वॉल्यूम पर ध्यान दें! (Volume Matters)

  • सिर्फ़ IEP देखना काफी नहीं. देखें कि उस IEP पर कितना वॉल्यूम (खरीदे-बेचे जाने वाले शेयरों की संख्या) है.
  • अगर IEP बहुत ऊँची/नीची है लेकिन वॉल्यूम बहुत कम है, तो ये "फेक मूव" हो सकती है. ऐसे में ऑर्डर डालते समय ज़्यादा सावधानी बरतें.
  • हाई वॉल्यूम के साथ ऊँची/नीची IEP ज़्यादा विश्वसनीय होती है.

5. पैनिक या फोमो से बचें! (Avoid Panic & FOMO)

  • प्री-ओपन में IEP अचानक बहुत ऊपर या नीचे चली जाए तो घबराएँ नहीं!
  • FOMO (Fear Of Missing Out) में जल्दबाज़ी में ऑर्डर न डालें.
  • खबरों को क्रॉस-चेक करें, टेक्निकल लेवल देखें (अगर आप इस्तेमाल करते हैं), और फिर ही डिसीजन लें.
  • याद रखें: प्री-ओपन सिर्फ़ ओपनिंग प्राइस सेट करता है. पूरा दिन ट्रेडिंग के लिए पड़ा है!

SEBI गाइडलाइंस: प्री-ओपन मार्केट के नियम! 📜

SEBI ने प्री-ओपन सेशन को फेयर और ट्रांसपेरेंट बनाने के लिए सख्त नियम बनाए हैं:

  1. केवल लिमिट ऑर्डर: जैसा कि बताया, सिर्फ़ लिमिट ऑर्डर ही स्वीकार्य हैं.
  2. प्राइस बैंड: प्री-ओपन में ऑर्डर डालते समय, ऑर्डर प्राइस पिछले दिन के क्लोजिंग प्राइस के ± 20% के अंदर ही होनी चाहिए. यानी अगर कोई शेयर पिछले दिन ₹100 पर बंद हुआ था, तो आप प्री-ओपन में उसके लिए ऑर्डर ₹80 से ₹120 के बीच में ही डाल सकते हैं. यह बैंड रेगुलर मार्केट (जहाँ बैंड सामान्यतः ± 5% या 10% होता है) से ज़्यादा चौड़ा है.
  3. Arbitrage Trading पर रोक: प्री-ओपन सेशन में NSE और BSE के बीच आर्बिट्राज़ (एक्सचेंजों पर कीमत के अंतर से फायदा उठाना) नहीं किया जा सकता.
  4. मार्केट मेकिंग: मार्केट मेकर्स की भूमिका प्री-ओपन सेशन में लागू नहीं होती.
  5. रोलिंग सेटलमेंट: प्री-ओपन सेशन में एक्ज़ीक्यूट हुए ऑर्डर का सेटलमेंट (T+1 दिन) रेगुलर मार्केट के ऑर्डरों के साथ ही होता है.

निष्कर्ष: प्री-ओपन मार्केट – सीखें, समझें, फिर फायदा उठाएं! 🏁

प्री-ओपन मार्केट भारतीय शेयर बाज़ार का एक महत्वपूर्ण और दिलचस्प हिस्सा है. यह सिर्फ़ 15 मिनट का होता है, लेकिन इसका असर पूरे ट्रेडिंग दिन पर पड़ सकता है. 🔥

  • नए निवेशक: पहले इसे सिर्फ़ ऑब्ज़र्व करें! IEP को देखकर मार्केट सेंटीमेंट समझने की कोशिश करें. जल्दबाज़ी में ऑर्डर डालने से बचें.
  • अनुभवी ट्रेडर्स: खबरों के साथ IEP और वॉल्यूम का विश्लेषण करके स्ट्रेटजिकल ऑर्डर डालें. ओपनिंग प्राइस सरप्राइज से बच सकते हैं और अच्छी एंट्री/एग्ज़िट पा सकते हैं.
  • जोखिम हमेशा रहता है: प्री-ओपन में लिक्विडिटी कम होती है और प्राइस मूवमेंट अप्रत्याशित हो सकती है. अपने रिस्क एपेटाइट के हिसाब से ही पार्टिसिपेट करें.

याद रखें: प्री-ओपन मार्केट एक टूल है. इस टूल को कैसे इस्तेमाल करना है, यह आपकी समझ, रिसर्च और रिस्क मैनेजमेंट पर निर्भर करता है. इसे समझकर और सावधानी से इस्तेमाल करके आप अपने ट्रेडिंग जर्नी को एक नई दिशा दे सकते हैं! 🚀

प्री-ओपन मार्केट पर अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs) ❓

1. प्री-ओपन मार्केट का टाइम क्या होता है?

जवाब: भारत में NSE और BSE पर प्री-ओपन मार्केट सुबह 9:00 AM से 9:15 AM तक चलता है.

2. क्या प्री-ओपन मार्केट में कोई भी ट्रेड कर सकता है?

जवाब: हाँ, जिस किसी के पास डीमैट और ट्रेडिंग अकाउंट है, वह प्री-ओपन सेशन में ऑर्डर डाल सकता है, बशर्ते वह स्टॉक उस सेशन में ट्रेडिंग के लिए खुला हो (सामान्यतः सभी इक्विटी शेयर).

3. प्री-ओपन मार्केट में कौन-कौन से ऑर्डर दिए जा सकते हैं?

जवाब: प्री-ओपन मार्केट में सिर्फ़ लिमिट ऑर्डर (Limit Orders) ही डाले जा सकते हैं. मार्केट ऑर्डर, स्टॉप लॉस ऑर्डर, ब्रैकेटेड ऑर्डर आदि स्वीकार्य नहीं हैं.

4. क्या प्री-ओपन मार्केट में ऑर्डर कैंसल या मॉडिफाई किया जा सकता है?

जवाब: हाँ, लेकिन सिर्फ़ पहले फेज़ (9:00 AM से 9:08 AM) में ही. ऑर्डर मिलान फेज़ (9:08 AM - 9:12 AM) और बफर फेज़ (9:12 AM - 9:15 AM) में ऑर्डर कैंसल या मॉडिफाई नहीं किए जा सकते.

5. इंडिकेटिव इक्विलिब्रियम प्राइस (IEP) क्या होती है?

जवाब: IEP वह अनुमानित कीमत है जो प्री-ओपन के पहले फेज़ (9:00-9:08 AM) में दिखाई जाती है. यह बताती है कि अगर उसी पल ऑर्डरों का मिलान हो तो शेयर किस प्राइस पर खुलेगा. यह लगातार बदलती रहती है. फाइनल ओपनिंग प्राइस इससे अलग हो सकती है.

6. क्या प्री-ओपन मार्केट में ट्रेडिंग करना सुरक्षित है?

जवाब: प्री-ओपन मार्केट में रेगुलर मार्केट की तुलना में जोखिम ज़्यादा हो सकता है क्योंकि लिक्विडिटी कम होती है और कीमतों में उतार-चढ़ाव तेज़ हो सकता है. इसे सिर्फ़ अनुभवी या जागरूक निवेशकों/ट्रेडर्स को ही ट्राई करना चाहिए. नए लोग पहले ऑब्ज़र्व करें.

7. प्री-ओपन मार्केट में एक्ज़ीक्यूट हुए ऑर्डर का सेटलमेंट कब होता है?

जवाब: प्री-ओपन सेशन में एक्ज़ीक्यूट हुए ट्रेडों का सेटलमेंट भी रेगुलर मार्केट के ट्रेडों की तरह ही T+1 दिन (ट्रेड डेट के अगले कारोबारी दिन) पर होता है.

8. क्या प्री-ओपन मार्केट में सभी शेयर ट्रेड होते हैं?

जवाब: जी हाँ, सामान्यतः NSE और BSE पर लिस्टेड सभी इक्विटी शेयर प्री-ओपन सेशन में ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध रहते हैं.

9. क्या प्री-ओपन मार्केट में ओपनिंग प्राइस हमेशा पिछले क्लोजिंग प्राइस के बराबर होती है?

जवाब: बिल्कुल नहीं! ओपनिंग प्राइस पिछले क्लोजिंग प्राइस के बराबर, ऊपर (Gap Up) या नीचे (Gap Down) कुछ भी हो सकती है. यह प्री-ओपन सेशन में जमा हुए ऑर्डरों पर निर्भर करता है.

10. प्री-ओपन मार्केट की जानकारी कहाँ देखें?

जवाब: आप अपने ब्रोकर के ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म या मोबाइल ऐप पर प्री-ओपन सेशन देख सकते हैं. इसके अलावा, NSE और BSE की आधिकारिक वेबसाइट पर भी यह जानकारी मिलती है:

😊 उम्मीद है ये डिटेल्ड गाइड आपको प्री-ओपन मार्केट की अच्छी समझ दे पाई होगी. इसे बुकमार्क कर लें और जब भी ज़रूरत हो, दोबारा पढ़ें! शेयर बाज़ार में सीखना कभी बंद नहीं होता. सीखते रहिए, समझदारी से निवेश कीजिए, और फायदा कमाइए! 💰🚀

डिस्क्लेमर (Disclaimer)

यह लेख केवल शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी हुई जानकारी किसी भी प्रकार से किसी भी स्टॉक या आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं है। शेयर बाजार में बिना अपने वित्तीय सलाहकार से विचार विमर्श किये निवेश ना करें। इस लेख में दी गई जानकारी के आधार पर हुए किसी भी नुकसान या वित्तीय हानि के लिए लेखक, या वेबसाइट को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

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