पहले भी लगे थे टैरिफ – तब भारतीय बाजार ने क्या किया था?

Hemant Saini
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 पहले भी लगे थे टैरिफ – तब भारतीय बाजार ने क्या किया था? 📉📈


🔍 क्यों आज यह सवाल फिर चर्चा में है?

अभी हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत से आयातित कई उत्पादों पर 50% टैरिफ लगाने का ऐलान कर दिया।
बाज़ार में हड़कंप मच गया—Nifty में तेज गिरावट, Sensex में लाखों करोड़ का मार्केट कैप उड़ गया, और निवेशकों में डर का माहौल बन गया।
लेकिन क्या यह पहली बार हो रहा है? नहीं! इतिहास गवाह है कि भारत ने पहले भी ऐसे झटके देखे हैं और उनसे उबर भी आया है।

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📜 2018 का पहला बड़ा टैरिफ झटका

  • मार्च 2018 में अमेरिका ने भारतीय स्टील और एल्यूमीनियम पर भारी टैरिफ लगाया।
  • निर्यातक कंपनियों—खासकर मेटल और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर—के शेयर कुछ ही दिनों में 15–20% गिर गए।
  • विदेशी निवेशक (FPI) बिकवाली मोड में चले गए, लेकिन कुछ महीनों में घरेलू निवेशकों के दम पर बाज़ार ने वापसी की।


💡 2019 – GSP प्रोग्राम खत्म होने का असर

  • अमेरिका ने भारत को GSP (Generalized System of Preferences) स्कीम से बाहर कर दिया।
  • इससे टेक्सटाइल, जेम्स-ज्वेलरी और ऑटो पार्ट्स के निर्यात पर दबाव आया।
  • शुरुआती गिरावट के बाद कंपनियों ने नए बाज़ार खोजे और धीरे-धीरे नुकसान की भरपाई की।


⚡ 2025 का ताज़ा झटका – 50% टैरिफ का असर

  • सिर्फ तीन दिनों में मार्केट से हज़ारों करोड़ का मार्केट कैप मिट गया।
  • IT और इंजीनियरिंग कंपनियों पर सबसे ज्यादा असर, जबकि फार्मा और डिफेंस सेक्टर को कम नुकसान हुआ।
  • रुपये में कमजोरी आई, जिससे इम्पोर्ट-हेवी सेक्टर की लागत और बढ़ गई।


🧠 इतिहास हमें क्या सिखाता है?

  1. शॉर्ट-टर्म पैनिक, लॉन्ग-टर्म रिकवरी – टैरिफ शॉक में मार्केट गिरता है, लेकिन सही नीतियों और कंपनियों की एडाप्टेबिलिटी से धीरे-धीरे रिकवरी होती है।
  2. डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो की ताकत – जिन निवेशकों ने सिर्फ एक सेक्टर में पैसा लगाया, उन्हें सबसे ज्यादा चोट लगी।
  3. घरेलू मांग का सहारा – भारतीय अर्थव्यवस्था की बड़ी ताकत है लोकल कंजम्प्शन, जो बाहरी दबाव के समय सहारा देता है।


📊 निवेशकों के लिए 5 काम की बातें

  1. घबराएं नहीं, होल्ड करें – गिरावट में बेचने से नुकसान पक्का होता है।
  2. सेक्टर रोटेशन करें – इम्पोर्ट-डिपेंडेंट सेक्टर से हटकर डोमेस्टिक फोकस सेक्टर में निवेश बढ़ाएं।
  3. कैश रिजर्व रखें – गिरावट में अच्छे स्टॉक्स सस्ते में मिलते हैं।
  4. डेब्ट और गोल्ड में बैलेंस – पोर्टफोलियो को सुरक्षित करने का पुराना फॉर्मूला आज भी काम करता है।
  5. लॉन्ग-टर्म विज़न रखें – इतिहास बताता है कि भारत इन झटकों से उबरता है।


🏁 निष्कर्ष

टैरिफ का असर तुरंत दिखता है, डर फैलता है, लेकिन भारतीय बाज़ार की बुनियादी ताकत और निवेशकों की धैर्यशीलता बार-बार यह साबित करती है—
"गिरावट स्थायी नहीं, लेकिन सही मौके स्थायी फायदे दे सकते हैं।"

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📚 स्रोत और संदर्भ

  • भारत और अमेरिका के बीच 2018 स्टील और एल्यूमीनियम टैरिफ विवाद – वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, भारत सरकार की प्रेस विज्ञप्ति।
  • 2019 में GSP प्रोग्राम से भारत की बहिष्करण की घोषणा – ऑफिस ऑफ़ द यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव (USTR) का आधिकारिक बयान।
  • 2018–2023 के बीच भारतीय शेयर बाजार में FPI इनफ्लो/आउटफ्लो डेटा – नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) मार्केट स्टैटिस्टिक्स।
  • डॉलर-रुपया विनिमय दर और सेक्टर-वाइज परफॉर्मेंस – रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) और BSE इंडस्ट्री रिपोर्ट।
  • 2025 के टैरिफ घोषणा पर शुरुआती मार्केट रिएक्शन – आज के प्रमुख आर्थिक समाचार और ब्रोकरेज हाउस रिसर्च अपडेट।

डिस्क्लेमर (Disclaimer)

यह लेख केवल शिक्षा के उद्देश्य से लिखा गया है। इसमें दी हुई जानकारी किसी भी प्रकार से किसी भी स्टॉक या आईपीओ में निवेश की सलाह नहीं है। शेयर बाजार में बिना अपने वित्तीय सलाहकार से विचार विमर्श किये निवेश ना करें। इस लेख में दी गई जानकारी के आधार पर हुए किसी भी नुकसान या वित्तीय हानि के लिए लेखक, या वेबसाइट को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।

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