Nifty या Sensex Index को असल में कौन चलाता है? – एक पर्दे के पीछे की कहानी

Hemant Saini
0
(toc)

Nifty या Sensex Index को असल में कौन चलाता है? – एक पर्दे के पीछे की कहानी

📈 भारतीय शेयर बाजार की धड़कन को समझने का सफर


🏁 1. Introduction – क्यों जरूरी है ये जानना कि Index को कौन चलाता है?

अक्सर टीवी पर खबर सुनते ही हमारे मन में एक सवाल कौंधता है: "आज तो नीली वाली लाइन (Nifty) बहुत ऊपर पहुँच गई! क्या किसी बड़े सेठ ने पूरे बाजार को खरीद लिया?" 🤔 या फिर, "सेंसेक्स 1000 अंक गिर गया, मतलब कोई तो है जो इसको नियंत्रित कर रहा है!"

लेकिन क्या सच में ऐसा है?

दरअसल, Nifty और Sensex कोई जादू की छड़ी नहीं हैं जिसे कोई एक व्यक्ति या संस्था चलाती हो। ये तो एक थर्मामीटर की तरह हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार के स्वास्थ्य का तापमान बताते हैं। ये इंडेक्स हमें यह दिखाते हैं कि बाजार में सबसे बड़ी और मजबूत कंपनियों का समूह कैसा प्रदर्शन कर रहा है।

nifty kaun chalata hai, sensex kiski company hai, index committee, nifty selection process, sensex me stock kaise jude, sebi guidelines for index, free float market cap

सोचिए... अगर एक थर्मामीटर 102 डिग्री दिखाए, तो क्या आप थर्मामीटर को दोष देते हैं? नहीं न! आप समझते हैं कि बुखार शरीर में है, थर्मामीटर में नहीं। ठीक उसी तरह, Nifty और Sensex सिर्फ दर्पण हैं, जो बाजार की भावनाओं, आर्थिक हालात और कंपनियों के performance को दिखाते हैं।

पर सवाल यह उठता है कि आखिर ये थर्मामीटर बनता कैसे है? इसमें वो 50 या 30 कंपनियाँ चुनता कौन है? क्या कोई गुप्त कमरे में बैठा हुआ है जो बटन दबाता है और कंपनियाँ इंडेक्स में आ जाती हैं या निकल जाती हैं?

इस आर्टिकल में, हम इसी पर्दे के पीछे की कहानी को बारीकी से समझेंगे। हम उन लोगों, प्रक्रियाओं और नियमों से रूबरू होंगे, जो हमारे बाजार के सबसे महत्वपूर्ण सूचकांकों को आकार देते हैं। यह जानकारी न केवल आपकी जिज्ञासा शांत करेगी, बल्कि एक बेहतर निवेशक के तौर पर आपकी सोच को भी पुख्ता करेगी।

चलिए, इस रोमांचक यात्रा की शुरुआत करते हैं!


🏗️ 2. Index क्या होता है और इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

शेयर बाजार में हजारों कंपनियाँ लिस्टेड हैं। हर दिन, कुछ कंपनियों के शेयर ऊपर जाते हैं, तो कुछ नीचे आते हैं। अब सवाल यह है कि पूरे बाजार का मूड (sentiment) कैसे समझा जाए? कैसे पता चले कि आज बाजार ऊपर गया है या नीचे?

इसी समस्या के समाधान के लिए Stock Market Index का जन्म हुआ।

Index क्या है?
एक इंडेक्स एक "प्रतिनिधि टोकरी" (Representative Basket) की तरह है। जैसे आप सब्जी मंडी से अलग-अलग सब्जियों की एक टोकरी खरीदते हैं, और उस टोकरी के दाम से पूरी मंडी के भाव का अंदाजा लगा लेते हैं। ठीक वैसे ही, एक शेयर बाजार इंडेक्स बाजार की सबसे बड़ी और सबसे महत्वपूर्ण कंपनियों की एक टोकरी है। इस टोकरी के औसत मूल्य (Average Value) में होने वाले उतार-चढ़ाव से हमें पूरे बाजार की दिशा का पता चलता है।

Index की भूमिका क्यों जरूरी है?

  1. परफॉर्मेंस का मापदंड (Benchmark): यह निवेशकों और फंड मैनेजरों के लिए एक बेंचमार्क का काम करता है। अगर आपके म्यूचुअल फंड ने Nifty से बेहतर रिटर्न दिया, तो समझिए आपके फंड मैनेजर ने बढ़िया काम किया।
  2. इकोनॉमी का आईना: इंडेक्स में शामिल कंपनियाँ देश की आर्थिक रीढ़ होती हैं। अगर इंडेक्स मजबूत है, तो माना जाता है कि देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत है।
  3. ETF और Index Funds का आधार: आजकल बहुत लोकप्रिय हो रहे Index Funds और ETFs (Exchange Traded Funds) सीधे तौर पर इंडेक्स को फॉलो करते हैं। यानी, इंडेक्स के बिना ये निवेश के विकल्प ही नहीं बन पाते।
  4. सेंटिमेंट इंडिकेटर: यह बाजार के मनोबल को दर्शाता है। तेजी (Bull Run) या मंदी (Bear Phase) का अंदाजा इंडेक्स के चलन से लगाया जाता है।

वैश्विक उदाहरण (Global Examples):
दुनिया के हर बड़े बाजार का अपना एक प्रमुख इंडेक्स है।

  • अमेरिका: S&P 500 (500 कंपनियों का इंडेक्स), Dow Jones Industrial Average (30 कंपनियों का इंडेक्स)
  • ब्रिटेन: FTSE 100 (लंदन स्टॉक एक्सचेंज की 100 शीर्ष कंपनियाँ)
  • जापान: Nikkei 225 (जापान की 225 प्रमुख कंपनियाँ)

और भारत में, यह भूमिका Nifty और Sensex निभाते हैं।

यह भी पढ़ें: 👉👉 शेयर मार्केट कैसे सीखे? – Beginners के लिए Step-by-Step Map


🇮🇳 3. भारत में Index का इतिहास – Nifty और Sensex की कहानी

भारत में इंडेक्स की कहानी दो प्रमुख स्टॉक एक्सचेंजों - बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के बीच की प्रतिस्पर्धा और विकास की कहानी है।

Sensex (BSE) की शुरुआत – 1986

  • BSE भारत का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज है, जिसकी स्थापना 1875 में हुई थी।
  • लेकिन 1986 तक, बाजार के overall performance को ट्रैक करने का कोई मानक तरीका नहीं था।
  • इसी जरूरत को पूरा करने के लिए 1 जनवरी, 1986 को SENSitive indEX यानी Sensex की शुरुआत हुई।
  • शुरुआत में इसका आधार वर्ष 1978-79 को माना गया और आधार मूल्य (Base Value) 100 रखा गया।
  • उस समय इसमें BSE की 30 सबसे बड़ी और सक्रिय कंपनियों को शामिल किया गया था।
Sensex Chart
Sensex Chart

Nifty (NSE) की शुरुआत – 1996

  • 1990 के दशक में भारत के आर्थिक उदारीकरण के बाद, बाजार में पारदर्शिता और तकनीकी सुधार की जरूरत महसूस हुई।
  • इसी के चलते 1992 में National Stock Exchange (NSE) की स्थापना हुई।
  • NSE ने अपनी शुरुआत के बाद, BSE के Sensex के विकल्प के तौर पर 22 अप्रैल, 1996 को अपना इंडेक्स लॉन्च किया, जिसका नाम रखा गया Nifty
  • Nifty का पूरा नाम National Stock Exchange Fifty है, क्योंकि इसमें NSE की 50 प्रमुख कंपनियाँ शामिल हैं।
  • इसका आधार वर्ष 1995 है और आधार मूल्य 1000 रखा गया था।
Nifty 50 Chart
Nifty 50 Chart

क्यों दो अलग-अलग इंडेक्स बने?

यह एक स्वाभाविक सवाल है। दरअसल, दो अलग-अलग स्टॉक एक्सचेंज हैं, और हर एक्सचेंज अपने बाजार के प्रदर्शन को दिखाने के लिए अपना खुद का एक सूचकांक बनाता है। यह ठीक वैसा ही है जैसे दो अलग-अलग न्यूज़ चैनल एक ही घटना की रिपोर्टिंग अपने-अपने अंदाज में करते हैं।

Sensex और Nifty में मुख्य अंतर

पैरामीटरSensexNifty
मालिकBSE Ltd.NSE Indices Ltd. (NSE की एक सहायक कंपनी)
कंपनियों की संख्या3050
कैलकुलेशन विधिFree-float Market CapitalizationFree-float Market Capitalization
आधार वर्ष1978-791995
आधार मूल्य1001000
सैक्टर डायवर्सिफिकेशनकम (क्योंकि सिर्फ 30 कंपनियाँ हैं)ज्यादा (50 कंपनियाँ होने की वजह से)

ऐतिहासिक पड़ाव (Historical Milestones)

  • 1990: Sensex ने पहली बार 1000 का आँकड़ा छुआ।
  • 2000 का दशक: IT बूम और आर्थिक विकास ने इंडेक्स को नई ऊँचाइयों पर पहुँचाया।
  • 2008 का वैश्विक वित्तीय संकट: इंडेक्स में भारी गिरावट देखने को मिली, जिसने इसकी संवेदनशीलता को दर्शाया।
  • 2020 का कोविड क्रैश और फिर रिकवरी: इस दौरान इंडेक्स ने तेजी से गिरने और फिर तेजी से उछलने की अद्भुत क्षमता दिखाई।
  • 2024: Sensex 80,000 और Nifty 24,000 के ऐतिहासिक स्तर को पार कर चुके हैं।

ये आँकड़े दर्शाते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था और कॉर्पोरेट जगत ने कितनी लंबी दूरी तय की है।


🧩 4. पर्दे के पीछे कौन हैं असली फैसले लेने वाले लोग?

अब हम उस सवाल के जवाब के करीब पहुँच रहे हैं, जिसके लिए आप यह आर्टिकल पढ़ रहे हैं। तो आखिर कौन है वो "अदृश्य हाथ" जो इन इंडेक्स को चलाता है?

जवाब है: कोई एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक पूरी तरह से संस्थागत और पारदर्शी प्रक्रिया और एक Committee (समिति)

चलिए, अलग-अलग इंडेक्स के हिसाब से समझते हैं।

🧷 Nifty को कौन चलाता है?

  • मालिक कौन है? Nifty Index का मालिक NSE Indices Limited है। यह कंपनी पहले India Index Services & Products Ltd. (IISL) के नाम से जानी जाती थी। यह कंपनी खुद National Stock Exchange (NSE) की एक पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी (subsidiary) है।
  • फैसला कौन लेता है? NSE Indices Limited के पास एक Index Maintenance Sub-Committee (IMSC) होती है। यही वो समिति है जो Nifty इंडेक्स से जुड़े सभी महत्वपूर्ण फैसले लेती है, जैसे कि कौन-सी कंपनी इंडेक्स में शामिल होगी, कौन-सी बाहर जाएगी, और उनका वेटेज (भार) क्या होगा।

🧷 Sensex को कौन चलाता है?

  • मालिक कौन है? Sensex Index का मालिक BSE Ltd. ही है।
  • फैसला कौन लेता है? BSE के पास एक Index Committee है। यह समिति Sensex और BSE के अन्य सभी इंडेक्स के रखरखाव और प्रबंधन की जिम्मेदारी संभालती है।

👥 Committee में कौन-कौन होते हैं?

ये कोई रहस्यमयी लोग नहीं हैं। इन समितियों में देश के कुछ बेहतरीन और अनुभवी वित्तीय विशेषज्ञ (Financial Experts), अर्थशास्त्री (Economists), फंड मैनेजर (Fund Managers), और कभी-कभी शिक्षाविद (Professors) शामिल होते हैं। इन सदस्यों का चयन उनकी विशेषज्ञता, अनुभव और बाजार की गहरी समझ के आधार पर किया जाता है।

महत्वपूर्ण बात: ये समितियाँ पूरी तरह से निष्पक्ष (Impartial) होती हैं। इनके फैसले किसी एक व्यक्ति की मर्जी से नहीं, बल्कि पहले से तय वैज्ञानिक मापदंडों (Scientific Criteria) और SEBI के दिशा-निर्देशों पर आधारित होते हैं। इनके फैसलों में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए, किसी भी तरह के Conflicts of Interest (हितों का टकराव) से बचा जाता है। मसलन, अगर किसी सदस्य की किसी खास कंपनी में व्यक्तिगत हिस्सेदारी है, तो उस कंपनी से जुड़े फैसले लेते समय उस सदस्य को चर्चा से अलग रखा जाता है।

तो अब आप समझ गए होंगे कि Nifty या Sensex कोई एक "बड़ा सेठ" नहीं चलाता, बल्कि यह एक पूरी तरह से संस्थागत और नियम-आधारित प्रक्रिया का नतीजा है।

यह भी पढ़ें: 👉👉 ट्रेडिंग कैसे सीखें | Trading Kaise Sikhe | Beginner से Expert तक


⚙️ 5. Index बनाने की Process Step-by-Step (सरल व्याख्या)

अब सवाल यह है कि आखिर ये समितियाँ किस आधार पर तय करती हैं कि कौन-सी कंपनी इंडेक्स में जगह बनाने के लायक है? यह प्रक्रिया बेहद व्यवस्थित और डेटा-आधारित है।

🧮 Step 1: पात्र शेयरों की सूची बनाना (Eligible Stocks की Screening)

सबसे पहले, पूरे बाजार के सभी शेयरों को एक छलनी (Sieve) से छाना जाता है। इस छलनी के छिद्र कुछ इस प्रकार हैं:

  • न्यूनतम ट्रेडिंग इतिहास (Minimum Trading History): कंपनी को कम से कम 6 महीने (या उससे अधिक) से स्टॉक एक्सचेंज में लिस्टेड होना चाहिए। इससे कंपनी की स्थिरता का पता चलता है।
  • फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन (Free-float Market Cap): यह सबसे महत्वपूर्ण कसौटी है। फ्री-फ्लोट मार्केट कैप का मतलब है कंपनी का वह बाजार पूंजीकरण जो सार्वजनिक रूप से खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध है। प्रमोटरों, सरकारी या स्ट्रेटेजिक होल्डिंग्स को इसमें शामिल नहीं किया जाता। Nifty और Sensex दोनों ही शीर्ष की फ्री-फ्लोट मार्केट कैप वाली कंपनियों को चुनते हैं।
  • तरलता (Liquidity): कंपनी के शेयर की खरीद-बिक्री आसानी से होती हो। इसे मापने के लिए Impact Cost और Average Daily Turnover जैसे पैमानों का इस्तेमाल होता है। Impact Cost बताता है कि बिना शेयर की कीमत बिगाड़े, बड़ी मात्रा में शेयर खरीदे-बेचे जा सकते हैं या नहीं।

इन सभी कसौटियों पर खरी उतरने वाली कंपनियों की एक लंबी सूची (Eligible Universe) तैयार होती है।

🧮 Step 2: वेटेज औसत की गणना (Weighted Average Calculation)

अब सिर्फ टोकरी में शामिल करना ही काफी नहीं है। यह भी तय करना होता है कि टोकरी में हर सब्जी का कितना वजन (Weight) है। ठीक उसी तरह, इंडेक्स में हर कंपनी का एक वेटेज तय होता है।

1.) फ्री-फ्लोट मार्केट कैप विधि: इंडेक्स में कंपनियों का वेटेज उनके फ्री-फ्लोट मार्केट कैप के आधार पर तय होता है।

2.) कैसे काम करता है? जिस कंपनी का फ्री-फ्लोट मार्केट कैप जितना बड़ा होगा, उसका इंडेक्स पर उतना ही ज्यादा प्रभाव (Influence) होगा।

उदाहरण: मान लीजिए Nifty की कुल फ्री-फ्लोट मार्केट कैप 100 लाख करोड़ रुपये है।

  • अगर रिलायंस इंडस्ट्रीज की फ्री-फ्लोट मार्केट कैप 10 लाख करोड़ है, तो उसका वेटेज होगा (10/100) = 10%।
  • अगर एक छोटी कंपनी की फ्री-फ्लोट मार्केट कैप 1 लाख करोड़ है, तो उसका वेटेज होगा (1/100) = 1%।

इसका मतलब है कि अगर रिलायंस के शेयर में 2% का उछाल आता है, तो उसका Nifty पर ज्यादा असर पड़ेगा, बजाय उस छोटी कंपनी के, जिसके शेयर में भी 2% का उछाल आया हो।

🧮 Step 3: आवधिक समीक्षा (Periodic Review)

बाजार हमेशा गतिशील रहता है। कंपनियाँ बढ़ती हैं, घटती हैं, कुछ नई आती हैं, तो कुछ पुरानी बंद हो जाती हैं। इसलिए, इंडेक्स को भी अपडेट रखने की जरूरत होती है।

  • हर 6 महीने में Review: Nifty और Sensex दोनों की आधिकारिक समीक्षा हर 6 महीने में की जाती है। आमतौर पर यह समीक्षा 31 मार्च और 30 सितंबर को होने वाले व्यापार के आधार पर की जाती है, और बदलाव जून और दिसंबर में लागू होते हैं।
  • कौन बाहर, कौन अंदर: इस समीक्षा में यह तय किया जाता है कि कौन-सी कंपनियाँ इंडेक्स में अपनी जगह बनाए रखने के लायक नहीं रह गई हैं और उनकी जगह किस नई Eligible कंपनी को लिया जा सकता है।

वास्तविक उदाहरण:

  • Adani Enterprises: कंपनी के मार्केट कैप और तरलता में भारी वृद्धि के बाद उसे Nifty 50 में शामिल किया गया।
  • Yes Bank: बैंक के वित्तीय संकट और उसके मार्केट कैप में भारी गिरावट के बाद उसे Nifty 50 से हटा दिया गया था।

इस तरह, यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि इंडेक्स हमेशा देश की सबसे मजबूत और सबसे प्रासंगिक कंपनियों का प्रतिनिधित्व करे।


🕵️ 6. कौन Decide करता है कि कौन सा Stock जोड़ा या हटाया जाए?

पिछले चरण में हमने प्रक्रिया समझी, लेकिन अंतिम फैसला लेने का अधिकार किसके पास है? जवाब फिर से वही है - Index Committee

यह समिति Step-1 और Step-2 में एकत्र किए गए सभी डेटा और आँकड़ों का गहन विश्लेषण करती है। समिति के सामने सिर्फ नंबर नहीं होते, बल्कि वो इन आँकड़ों के पीछे के संदर्भ (Context) को भी समझती है।

समिति विचार करती है:

  • सैक्टर का प्रतिनिधित्व (Sector Representation): क्या इंडेक्स में बैंकिंग, IT, ऑटोमोबाइल, FMCG, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सभी प्रमुख sectors का उचित प्रतिनिधित्व है? अगर किसी एक सेक्टर की बहुत ज्यादा कंपनियाँ हैं, तो समिति संतुलन बनाने की कोशिश कर सकती है।
  • कंपनी की वित्तीय सेहत: कंपनी के Corporate Governance (कॉर्पोरेट गवर्नेंस) के रिकॉर्ड, कर्ज का स्तर और भविष्य की ग्रोथ संभावनाओं पर भी नजर डाली जाती है।
  • SEBI के नियम: सभी फैसले SEBI द्वारा तय दिशा-निर्देशों के दायरे में ही लिए जाते हैं।

यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी (Transparent) है, मगर फैसले लेने की चर्चाएँ गोपनीय (Confidential) रहती हैं। इसका मतलब यह है कि समिति किन कंपनियों पर विचार कर रही है, यह सार्वजनिक रूप से नहीं बताया जाता, ताकि बाजार में अनधिकृत speculation (अटकलबाजी) न हो। लेकिन, एक बार फैसला हो जाने के बाद, उसे आधिकारिक तौर पर प्रेस रिलीज और एक्सचेंज की वेबसाइट पर घोषित कर दिया जाता है।

वास्तविक केस स्टडी:

केस 1: HDFC Life और SBI Life का Nifty 50 में प्रवेश
जब HDFC Life और SBI Life जैसी इंश्योरेंस कंपनियों का मार्केट कैप और ट्रेडिंग वॉल्यूम एक निश्चित स्तर से ऊपर पहुँच गया, तो वे Nifty के चयन के मानदंडों पर खरी उतरने लगीं। साथ ही, इंश्योरेंस सेक्टर भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ रहा था। इन सब कारणों से Index Committee ने फैसला किया कि इन कंपनियों को इंडेक्स में शामिल करना उचित रहेगा, ताकि इंडेक्स में इंश्योरेंस सेक्टर का भी प्रतिनिधित्व हो सके।

केस 2: Zee Entertainment का Nifty से बाहर होना
Zee Entertainment कई सालों से Nifty 50 का हिस्सा थी। लेकिन कंपनी पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगे, उसके Corporate Governance पर सवाल उठे और सबसे बढ़कर, उसके मार्केट कैप में भारी गिरावट आई। ये सभी कारण इंडेक्स में बने रहने के मानदंडों के खिलाफ थे। इस वजह से Index Committee ने उसे इंडेक्स से हटाने का फैसला किया।

इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि भावनाओं या पसंद-नापसंद के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस आँकड़ों और नियमों के आधार पर फैसले लिए जाते हैं।


🔍 7. Index Weightage की असली कहानी – कौन कितना Power रखता है?

अब हम एक और दिलचस्प पहलू पर बात करेंगे - इंडेक्स में ताकत का खेल। क्या इंडेक्स की सभी 50 कंपनियाँ बराबर हैं? जवाब है: बिल्कुल नहीं!

जैसा कि हमने पहले समझा, वेटेज फ्री-फ्लोट मार्केट कैप के आधार पर तय होता है। इसका सीधा-सा मतलब है कि जिन कंपनियों का वेटेज ज्यादा है, उनके पास पूरे इंडेक्स को हिलाने-डुलाने की शक्ति भी ज्यादा है।

Nifty 50 में Power Equation (लगभग):

  • शीर्ष 10 कंपनियाँ (जैसे Reliance Industries, HDFC Bank, ICICI Bank, Infosys, TCS) मिलकर Nifty के कुल movement का लगभग 60-70% हिस्सा तय करती हैं।
  • बाकी की 40 कंपनियाँ मिलकर सिर्फ 30-40% प्रभाव डाल पाती हैं।

रियल-टाइम उदाहरण के साथ समझें:

मान लीजिए, एक दिन बाजार में यह हालात हैं:

  • Reliance Industries (जिसका Nifty में वेटेज लगभग 10% है) के शेयर 3% गिर जाते हैं।
  • लेकिन, एक मिड-कैप कंपनी, जिसका वेटेज सिर्फ 1% है, के शेयर 5% बढ़ जाते हैं।

क्या होगा Nifty पर असर?

  • Reliance के कारण Nifty पर नकारात्मक असर: 10% वेटेज x 3% गिरावट = -0.30%
  • मिड-कैप कंपनी के कारण सकारात्मक असर: 1% वेटेज x 5% बढ़त = +0.05%
  • कुल नेट असर: -0.30% + 0.05% = -0.25%

यानी, Nifty उस दिन 0.25% नीचे आ जाएगा, भले ही बाजार में ज्यादातर शेयर हरे (तेज) हों। क्यों? क्योंकि Reliance जैसे "हाथी" का वजन इतना ज्यादा है कि उसकी एक छोटी सी हलचल भी पूरे इंडेक्स की दिशा बदल सकती है।

इसका मतलब क्या है?
इसका मतलब है कि अगर आप Nifty का performance समझना चाहते हैं, तो आपको उसकी Top 10-15 कंपनियों पर खास नजर रखनी चाहिए। इन दिग्गज कंपनियों के नतीजे (Quarterly Results), कोई बड़ी घोषणा (Announcement) या उनके सेक्टर में कोई बदलाव, सीधे तौर पर आपके पोर्टफोलियो के Index Funds या ETFs को प्रभावित करेगा।

यह "असमान वितरण" इंडेक्स की एक सच्चाई है, और एक समझदार निवेशक के लिए इसे समझना बेहद जरूरी है।


🧭 8. क्या Index को Manipulate किया जा सकता है? – Myth vs Reality

एक आम धारणा यह भी है कि बड़े Foreign Institutional Investors (FII) या देशी बड़े निवेशक (DII) मनमाने ढंग से खरीद-बिक्री करके इंडेक्स को अपने मनमुताबिक चला सकते हैं। आइए, इस मिथक की सच्चाई जानते हैं।

"FII की खरीदारी से Nifty ऊपर गया" – क्या यह Manipulation है?

जवाब है: नहीं, यह Manipulation नहीं, बल्कि Demand और Supply का सिद्धांत है।

  • अगर FIIs या किसी भी बड़े निवेशक ने बड़ी मात्रा में शेयर खरीदे, तो उन शेयरों की माँग (Demand) बढ़ेगी।
  • माँग बढ़ने से उन शेयरों की कीमतें बढ़ेंगी।
  • और चूँकि वे शेयर इंडेक्स का हिस्सा हैं, और उनका वेटेज ज्यादा है, तो इंडेक्स भी ऊपर जाएगा।

यह एक प्राकृतिक बाजार प्रक्रिया है, न कि कोई हेराफेरी।

फिर भी, क्या Manipulation संभव है?

इंडेक्स के कैलकुलेशन फॉर्मूले में हेराफेरी करना लगभग असंभव है, क्योंकि:

  1. फ्री-फ्लोट फॉर्मूला: चूँकि वेटेज की गणना फ्री-फ्लोट मार्केट कैप से होती है, इसलिए प्रमोटरों के पास जमे हुए शेयरों का इंडेक्स पर कोई असर नहीं होता। कोई प्रमोटर चाहे भी तो अपने जमे हुए शेयर बेचकर वेटेज नहीं बढ़ा सकता।
  2. पारदर्शी नियम: चयन और बहिष्कार के नियम सार्वजनिक डोमेन में हैं। कोई भी जान सकता है कि कंपनी को इंडेक्स में आने के लिए क्या योग्यताएँ पूरी करनी होंगी।
  3. SEBI की नजर: SEBI की सख्त निगरानी है। कोई भी असामान्य गतिविधि या मैनीपुलेशन का प्रयास पकड़ा जा सकता है और उस पर कड़ी कार्रवाई होती है।

फिर भी, Short-Term का असर (The Wobbly Tooth Effect)

हाँ, एक बात जरूर है। कभी-कभी, किसी मिड-कैप कंपनी के शेयर में, इंडेक्स समीक्षा से पहले, असामान्य रूप से ज्यादा खरीदारी देखने को मिल सकती है। ऐसा इस उम्मीद में किया जाता है कि कंपनी अगली समीक्षा में इंडेक्स में शामिल हो जाएगी, और एक बार शामिल होने के बाद उसके शेयरों की माँग Index Funds की तरफ से अपने-आप बढ़ जाएगी। लेकिन, यह एक जोखिम भरा और अल्पकालिक खेल है, क्योंकि Index Committee के फैसले की कोई गारंटी नहीं होती।

निष्कर्ष यह है कि इंडेक्स के लंबे समय के ट्रेंड और संरचना को Manipulate करना व्यावहारिक रूप से असंभव है। यह एक मजबूत और नियम-आधारित ढाँचे पर टिका हुआ है।


🧠 9. ETFs और Mutual Funds के लिए Index का महत्व

अगर आपने कभी Mutual Funds में निवेश किया है, तो आपने Index Funds या ETFs (Exchange Traded Funds) का नाम जरूर सुना होगा। ये आजकल निवेश की दुनिया के सबसे बड़े सितारे हैं, और इनकी पूरी कहानी इंडेक्स के इर्द-गिर्द घूमती है।

Nifty 50 ETF या Sensex ETF क्या करते हैं?

  • साधारण भाषा में: एक Nifty 50 ETF, Nifty 50 इंडेक्स की एक "छाया" या "नकल" है। जो कंपनियाँ Nifty 50 में हैं और जिस वेटेज के साथ हैं, ठीक उसी वेटेज के साथ ETF भी उन्हीं कंपनियों के शेयर खरीदता है।
  • उदाहरण: अगर Nifty 50 में Reliance का 10% वेटेज है, तो Nifty 50 ETF भी अपने पैसे का 10% हिस्सा Reliance के शेयरों में लगाएगा।
  • लक्ष्य: ETF का एकमात्र लक्ष्य होता है - इंडेक्स जैसा ही रिटर्न देना, न उससे ज्यादा, न कम।

Passive Investing का बढ़ता क्रेज

इंडेक्स फंड्स और ETFs, Passive Investing (निष्क्रिय निवेश) की श्रेणी में आते हैं। इसकी तुलना Active Investing (सक्रिय निवेश) से की जाती है।

  • Active Fund: यहाँ एक फंड मैनेजर होता है जो लगातार रिसर्च करता है और यह कोशिश करता है कि वह ऐसे शेयर चुनकर बाजार (इंडेक्स) से बेहतर रिटर्न दे सके।
  • Passive Fund (Index Fund/ETF): यहाँ कोई फंड मैनेजर शेयर चुनने का काम नहीं करता। बस, बिना किसी सोच-विचार के इंडेक्स की नकल की जाती है।

आश्चर्य की बात यह है कि ज्यादातर Active Fund Manager लंबे समय में इंडेक्स को मात दे पाने में नाकाम रहते हैं! इसलिए, कम खर्च (Low Cost) और सुविधाजनक निवेश की वजह से Passive Investing की लोकप्रियता आसमान छू रही है।

कैसे इंडेक्स का बदलना Fund Flow को प्रभावित करता है?

जब भी Nifty या Sensex में कोई बदलाव होता है, उसका सीधा असर करोड़ों-अरबों रुपये के Fund Flow पर पड़ता है।

मान लीजिए, 'कंपनी A' को Nifty 50 से हटाकर 'कंपनी B' को शामिल किया गया।

  • अब, दुनिया भर के सभी Nifty 50 Index Funds और ETFs को अपनी होल्डिंग्स को बदलना होगा।
  • उन्हें 'कंपनी A' के सारे शेयर बेचने होंगे और 'कंपनी B' के शेयर खरीदने होंगे।
  • इससे 'कंपनी A' के शेयरों पर बिकवाली का दबाव बनेगा और कीमतें गिर सकती हैं।
  • जबकि 'कंपनी B' के शेयरों में एकसाथ भारी माँग पैदा होगी और कीमतें बढ़ सकती हैं।

इस तरह, एक इंडेक्स समिति का फैसला सीधे तौर पर कंपनियों के बाजार मूल्य और हजारों निवेशकों के पोर्टफोलियो को प्रभावित करता है। यह इंडेक्स की शक्ति का एक और प्रमाण है।


📊 10. Index Maintenance Committee कैसे काम करती है? – पर्दे के पीछे का सिस्टम

अब तक हमने समिति के फैसलों के बारे में तो बहुत कुछ जान लिया, आइए अब थोड़ा यह जानें कि यह समिति आखिरकार कैसे काम करती है। यह कोई आकस्मिक बैठक नहीं होती, बल्कि एक बेहद व्यवस्थित प्रक्रिया है।

  • त्रैमासिक बैठकें (Quarterly Meetings): हालाँकि इंडेक्स की मुख्य समीक्षा 6 महीने में होती है, लेकिन समिति की बैठकें त्रैमासिक (हर 3 महीने में) या उससे भी अधिक बार हो सकती हैं। इन बैठकों में इंडेक्स के daily functioning, किसी भी तकनीकी मुद्दे, या फिर किसी emergency स्थिति (जैसे किसी कंपनी का विलय या दिवालिया होना) पर चर्चा होती है।
  • SEBI Compliance: समिति का हर कदम और हर नियम SEBI के दिशा-निर्देशों के अनुरूप होना चाहिए। SEBI ने इंडेक्स के गठन और प्रबंधन के लिए स्पष्ट नियम जारी किए हैं, जिनका पालन करना अनिवार्य है।
  • पब्लिक एनाउंसमेंट प्रक्रिया: जब भी इंडेक्स में कोई बदलाव तय हो जाता है, उसे एक आधिकारिक प्रेस रिलीज के जरिए सार्वजनिक किया जाता है। यह प्रेस रिलीज BSE और NSE की अपनी वेबसाइटों पर भी डाल दी जाती है, ताकि हर निवेशक को इसकी जानकारी मिल सके। बदलाव लागू होने से पहले एक नोटिस पीरियड (Notice Period) भी दिया जाता है, ताकि निवेशक और फंड मैनेजर अपनी रणनीति बना सकें।
  • पारदर्शिता और शासन ढाँचा (Transparency & Governance): समिति के सदस्यों के नाम सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होते हैं। हालाँकि, मीटिंग की internal चर्चाएँ गोपनीय रहती हैं, लेकिन फैसलों के आधार और मापदंड पूरी तरह से पारदर्शी हैं।

Thematic Indices का जन्म

NSE और BSE सिर्फ Nifty 50 और Sensex ही नहीं चलाते। उनके पास दर्जनों अन्य इंडेक्स हैं, जिन्हें Thematic या Sectoral Indices कहते हैं।

  • Nifty Bank: सिर्फ बैंकिंग सेक्टर की शीर्ष कंपनियों का इंडेक्स।
  • Nifty IT: सिर्फ आईटी कंपनियों का इंडेक्स।
  • BSE Auto, BSE Power आदि।

इन इंडेक्स को चलाने के लिए भी अलग-अलग समितियाँ या प्रक्रियाएँ होती हैं, जो उस specific सेक्टर के हिसाब से शेयरों का चयन करती हैं। इससे निवेशकों को किसी खास सेक्टर के performance पर नजर रखने में आसानी होती है।


🧩 11. Future of Index – AI और Algorithm से Selection का दौर

दुनिया में Artificial Intelligence (AI) और Machine Learning (ML) का दौर है, तो क्या इंडेक्स के चयन में भी इसका इस्तेमाल होगा? जवाब है: हाँ, यह भविष्य की दिशा है।

  • AI-Based Index Rebalancing: दुनिया के कुछ विकसित बाजारों में, AI का इस्तेमाल इंडेक्स को रीबैलेंस करने के लिए शुरू हो चुका है। AI Algorithms बड़े डेटा का विश्लेषण करके ऐसी कंपनियों को चुन सकते हैं, जिनमें भविष्य में तेजी की संभावना ज्यादा है। यह सिर्फ पुराने आँकड़ों (मार्केट कैप, लिक्विडिटी) पर निर्भरता को कम कर सकता है।
  • NSE Indices के Future Projects: NSE Indices Limited भी इस दिशा में काम कर रही है। वे Smart Beta Indices जैसे नए प्रोडक्ट ला रहे हैं। Smart Beta Indices, पारंपरिक इंडेक्स की तरह सिर्फ मार्केट कैप के आधार पर नहीं, बल्कि अन्य कारकों जैसे वॉल्यूमैटिलिटी (Volatility), डिविडेंड यील्ड (Dividend Yield), या ग्रोथ पोटेंशियल (Growth Potential) के आधार पर शेयरों का चयन करते हैं। इनमें AI और क्वांटिटेटिव मॉडल्स की मदद ली जाती है।
  • India-Specific Smart Beta Indices का उदय: भारत में भी Nifty100 Quality 30, Nifty50 Value 20 जैसे इंडेक्स मौजूद हैं। ये इंडेक्स निवेशकों को एक विशेष स्ट्रैटेजी (जैसे सिर्फ High-Quality कंपनियों में निवेश) पर फोकस करने का मौका देते हैं।

भविष्य में, हो सकता है कि हर निवेशक के लिए उसकी जोखिम क्षमता और लक्ष्य के हिसाब से एक Personalized Index बने, जिसे AI द्वारा मैनेज किया जाए। यह तकनीक निवेश की दुनिया को और भी रोमांचक बना देगी।


📈 12. Fun Section – अगर मैं खुद Index बनाऊँ तो क्या चुनूँगा?

अब तक हमने सारी गंभीर और तकनीकी बातें की हैं। चलिए, थोड़ा मस्ती करते हैं। मैं, एक लेखक और निवेशक के तौर पर, सोचता हूँ कि अगर मुझे 2025 के लिए अपना खुद का एक इंडेक्स बनाना हो, तो मैं किन 50 कंपनियों को चुनूँगा?

यह कोई वित्तीय सलाह नहीं, बस एक काल्पनिक व्यायाम है! 🤓

मेरा इंडेक्स होगा: "Bharat Unnati 50" (भारत उन्नति 50)

मेरे चयन के आधार:

  1. ग्रोथ और स्थिरता का मेल: ऐसी कंपनियाँ जो न सिर्फ तेजी से बढ़ रही हैं, बल्कि मंदी के दौर में भी मजबूत बनी रह सकती हैं।
  2. सेक्टरल डायवर्सिटी: पारंपरिक दिग्गजों के साथ-साथ नए एवं भविष्य के सेक्टरों का प्रतिनिधित्व।
  3. 'मेक इन इंडिया' फोकस: ऐसी कंपनियाँ जिनका बिजनेस मॉडल भारत की घरेलू अर्थव्यवस्था से गहरा जुड़ाव रखता है।

मेरी काल्पनिक टोकरी में शामिल हो सकती हैं ये 10 कंपनियाँ (उदाहरण के तौर पर):

  • Reliance Industries: Energy से लेकर Retail और Digital तक, भारत की जरूरतों का एकछत्र साम्राज्य।
  • HDFC Bank: वित्तीय स्थिरता और ग्रोथ का पर्याय।
  • Infosys: भारतीय IT सेक्टर का दिग्गज, ग्लोबल फुटप्रिंट के साथ।
  • Bajaj Finance: भारत की उपभोक्ता वित्त क्रांति का अगुआ।
  • Adani Green Energy: भारत की हरित ऊर्जा (Green Energy) में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी।
  • Tata Motors (विशेषकर Jaguar Land Rover): ग्लोबल ऑटोमोबाइल ब्रांड्स के साथ भारतीय इंजीनियरिंग का परचम।
  • Sun Pharma: दवाई के क्षेत्र में भारत की ग्लोबल पहचान।
  • Avenue Supermarts (DMart): रिटेल सेक्टर में किफायती और कारगर बिजनेस मॉडल।
  • Larsen & Toubro (L&T): भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण की रीढ़।
  • Zomato: नए भारत की डिजिटल लाइफस्टाइल और Food Ecosystem का प्रतिनिधि।

बाकी की 40 कंपनियों में मैं रेलवे, रक्षा, रिन्यूएबल एनर्जी, फिनटेक और एग्रीटेक जैसे सेक्टरों से कंपनियों को शामिल करूँगा।

इस कवायद से आप समझ सकते हैं कि एक इंडेक्स बनाना सिर्फ आँकड़ों का खेल नहीं है, इसमें अर्थव्यवस्था की समझ और भविष्य की दृष्टि भी शामिल होती है। आप भी सोचिए, आपका Personal Index कैसा होगा?


💬 13. FAQs Section (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)

1. Nifty और Sensex को असल में कौन चलाता है?
Nifty को NSE Indices Limited की Index Maintenance Sub-Committee (IMSC) चलाती है, जबकि Sensex को BSE Ltd. की Index Committee चलाती है। इन समितियों में वित्तीय विशेषज्ञ, अर्थशास्त्री और फंड मैनेजर शामिल होते हैं, जो पूर्वनिर्धारित मानदंडों और SEBI के नियमों के आधार पर फैसले लेते हैं।

2. Nifty में कौन से स्टॉक कैसे तय होते हैं?
स्टॉक का चयन मुख्य रूप से तीन आधारों पर होता है: (1) कंपनी का फ्री-फ्लोट मार्केट कैपिटलाइजेशन, (2) शेयर की तरलता (Impact Cost और Average Daily Turnover), और (3) कंपनी का ट्रेडिंग इतिहास। हर 6 महीने में समीक्षा करके इंडेक्स में बदलाव किए जाते हैं।

3. क्या सरकार या SEBI सीधे तौर पर इंडेक्स में दखल देती है?
नहीं, सरकार या SEBI सीधे तौर पर यह नहीं बताती कि किस कंपनी को इंडेक्स में शामिल किया जाए। हालाँकि, SEBI इंडेक्स बनाने के लिए दिशा-निर्देश जरूर जारी करती है, और समितियाँ इन्हीं दिशा-निर्देशों का पालन करती हैं। यह एक स्वतंत्र प्रक्रिया है।

4. इंडेक्स की समीक्षा कब-कब होती है?
Nifty और Sensex की औपचारिक समीक्षा हर 6 महीने में होती है। यह समीक्षा मार्च और सितंबर के अंत में की जाती है, और बदलाव जून और दिसंबर में लागू होते हैं। हालाँकि, किसी emergency स्थिति (जैसे कंपनी का विलय या दिवालिया होना) में बीच में भी बदलाव किया जा सकता है।

5. क्या एक रिटेल निवेशक Index Committee का सदस्य बन सकता है?
आमतौर पर, Committee के सदस्यों का चयन उनकी विशेषज्ञता, अनुभव और बाजार में ख्याति के आधार पर किया जाता है। एक सामान्य रिटेल निवेशक के लिए सीधे तौर पर सदस्य बन पाना मुश्किल है, लेकिन यह असंभव नहीं है। अगर कोई रिटेल निवेशक वित्तीय क्षेत्र में एक माने-जाने विशेषज्ञ बन जाए, तो भविष्य में उसके लिए अवसर हो सकता है।

6. इंडेक्स में बदलाव का म्यूचुअल फंड्स पर क्या असर होता है?
इंडेक्स में बदलाव का म्यूचुअल फंड्स, विशेषकर Index Funds और ETFs पर बहुत बड़ा असर होता है। इन फंड्स को इंडेक्स की हू-ब-हू नकल करनी होती है, इसलिए उन्हें बाहर जा रही कंपनी के सभी शेयर बेचने और नई आ रही कंपनी के शेयर खरीदने पड़ते हैं। इससे उन कंपनियों के शेयरों की कीमतों पर असर पड़ता है।


⚠️ 14. Disclaimer (अस्वीकरण)

यह लेख पूरी तरह से शैक्षिक और सूचनात्मक उद्देश्यों के लिए तैयार किया गया है। इसमें दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों जैसे NSE, BSE, और SEBI की आधिकारिक वेबसाइटों, उनके द्वारा जारी दस्तावेजों पर आधारित है।

यह लेख किसी भी प्रकार की वित्तीय या निवेश सलाह नहीं है। इंडेक्स में शामिल कंपनियों का उल्लेख केवल उदाहरण के तौर पर किया गया है और उनमें निवेश के लिए प्रोत्साहन नहीं माना जाना चाहिए।

शेयर बाजार में निवेश जोखिमों के अधीन है। किसी भी निवेश निर्णय को लेने से पहले, अपने वित्तीय सलाहकार (Financial Advisor) से सलाह अवश्य लें और अपनी व्यक्तिगत वित्तीय स्थिति, जोखिम सहनशीलता और निवेश लक्ष्यों को ध्यान में रखें।

लेखक और प्रकाशक इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी के उपयोग या दुरुपयोग से होने वाले किसी भी नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होंगे।


निष्कर्ष: 🎯

इस लंबी यात्रा के बाद, हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि Nifty और Sensex को चलाने वाला कोई एक 'अदृश्य हाथ' नहीं है। यह एक पारदर्शी, नियम-आधारित और संस्थागत प्रक्रिया का नतीजा है, जिसे देश के कुछ बेहतरीन दिमाग मिलकर संचालित करते हैं।

इंडेक्स कोई रहस्यमयी शक्ति नहीं, बल्कि बाजार की ताकतों - माँग और आपूर्ति, कंपनियों के प्रदर्शन और अर्थव्यवस्था की सेहत का एक सटीक दर्पण है। एक सामान्य निवेशक के तौर पर, इस पर्दे के पीछे की कहानी को समझना आपको भावनाओं में बहने से रोकता है और एक तर्कसंगत, जानकार निवेशक बनने में मदद करता है।

अगली बार जब आप Nifty या Sensex के उछलने-गिरने की खबर सुनें, तो आप समझ पाएँगे कि यह कोई इत्तेफाक नहीं, बल्कि एक जटिल पर सुव्यवस्थित मशीनरी का परिणाम है। आपका निवेश सफर सुरक्षित और ज्ञानवर्धक हो! 🙏

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)